माँ की ममता
बच्चों आज मैं जो कविता प्रस्तुत करने जा रहा हूँ , उसे मैने नहीं लिखा है। इसे दर-असल मेरे छोटे भाई "विश्व मोहन" ने लिखा है। वह अभी वर्ग "छ:" में पढता है। तो अपने हीं एक मित्र की कविता का आनंद लो।
माँ से पूछो कितनी ममता,
उसको अपनी संतान पर।
काट दो तो भी कहेगी
बेटे तू मेरा जिगर ॥
नष्ट हो जाना यहाँ की
सर्वदा की रीति है।
मरती नहीं रहती अमर
यारों, माँ की प्रीति है॥
बाल कॄष्ण , माता यशोदा की कहानी है निराली।
जिसके आगे छोटी होती सारी दौलत संसार की॥
-विश्व मोहन
वर्ग- "छ:"
स्कूल- केन्द्रीय विद्यालय , सोनपुर, बिहार।
प्रेषक - विश्व दीपक 'तन्हा'
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7 पाठकों का कहना है :
वाह बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभान अलाह :) बहुत सुंदर लगी आपकी कविता "विश्व मोहनजी
लिखते रहे ,अपने बड़े भइया से कम नही हैं आप ..:)
वाह ......तुम्हारी कविता तो भईया से भी ज्यादा अच्छी है। इसी तरह नित नई कविता लिखओ और साथ में हमें भी पढाऔ। ढेर सारी शुभकामनायें
बिल्कुल सटीक कहा आपने रंजू जी,
प्यारे बाबू विश्वमोहन जी आपने बहुत प्यारी कविता लिख डाली,लगता है आपने अपने ही बड़े भाई साहब से प्रतियोगिता कर रखी हो.बहुत अच्छे.
ढेरों आशाओं और आशीर्वाद समेत आपके भइया-
अलोक सिंह "साहिल'
"होनहार बिरवान के होत चीकने पात" कहावत सुनी है न आपने! यह आप पर भी लागू होती है. बहुत सुंदर कविता लिखी है आपने! बधाई!
इतनी छोटी उम्र और इतनी अच्छी सोच...
बहुत अच्छा लगा
एक अच्छी रचना विश्व मोहन .
११ - १२ साल के बच्चे की कलम से निकली इस कविता को पढने के बाद और भी बच्चे कुछ न कुछ लिखने को प्रेरित होंगे ऐसा मैं सोचती हूँ-
इस बाल कवि से परिचय कराने के लिए आप का धन्यवाद-
तन्हा जी,
आपके छोटे भाई भी आपकी तरह ही प्रतिभाशाली हैं..सुन्दर भावभरी प्यारी प्यारी कविता लिखी है.. उन्हे प्रोत्साहित करते रहें.. यह आगे चल कर जरूर कुछ कर गुजरेंगे... ऐसा इनकी कलम बतलाती है
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