बच्चे
बच्चे अच्छे लगते हैं
मीठी-मीठी बातें करते
हँसते खेलते पढते लिखते
बच्चे अच्छे लगते हैं
सहज सरल घर घर जाते
बैर मिटाते प्रेम बढाते
कुछ भी गाते गुनगुनाते
बच्चे अच्छे लगते हैं
चाँद सूरज पर ललचाते
रोते हकलाते बातें बनाते
सजते संवरते और सकुचाते
बच्चे अच्छे लगते हैं
बच्चे अच्छे नही लगते
काम पर जाते बोझ उठाते
पसीना बहाते देश को लजाते
बच्चे अच्छे नही लगते हैं
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डॉ.नंदन-बचेली, बस्तर (छ.ग.)

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4 पाठकों का कहना है :
नन्दन जी,
ये पंक्तियाँ बहुत प्यारी लगीं-
''चाँद सूरज पर ललचाते
रोते हकलाते बातें बनाते
सजते संवरते और सकुचाते
बच्चे अच्छे लगते हैं''
-सच में मुस्कराते बच्चे अच्छे लगते हैं और बाल श्रमिकों के प्रति भी आपने दुःख जताया और यह भी बताया कि इस से देश की छवि पर भी असर पड़ता है.अच्छी कविता है
यह भी बच्चों को भाएगी.
डॉ. नंदन..
आपकी रचनाओं से बालौद्यान को एक उर्जा प्राप्त हुई है। आपकी हर रचना एक सोच का बीज प्रदान करती है। इस रचना के दोनो ही पहलू संवेदित करते हैं।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बच्चे हँसते मुस्कराते ही अच्छे लगते हैं ..बहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता नंदन जी !!
नंदन जी,बहुत ही प्यारा वर्णन किया है विशेषकर बच्चों काये स्वरुप-
चाँद सूरज पर ललचाते
रोते हकलाते बातें बनाते
सजते संवरते और सकुचाते
बच्चे अच्छे लगते हैं
वास्तव में बच्चों का ये स्वरुप सिर्फ़ नफ़रत का ही पत्र हो सकता है.
बच्चे अच्छे नही लगते
काम पर जाते बोझ उठाते
पसीना बहाते देश को लजाते
बच्चे अच्छे नही लगते हैं
बहुत ही मिठास भरी मर्म को झकझोरने वाली प्यारी कविता
शुभकामनाओं समेत
आलोक सिंह "साहिल"
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