बाल कवि सम्मेलन की नवीं कविता...
थी एक अकेली तितली
काले रंग की वह तितली
अपने रंग को लेकर
मन में छा गई थी उदासी
काश उसके भी जीवन में
आजाये थोड़ी-सी खुशी.....
थे सब उससे दूर
क्यों कि रंग था उसका काला
पर गाती थी वह ऐसे
जैसे भर रही हो मधु का प्याला.....
खींचा उसने सब को ऐसे
चुम्बक खींचे लोहे को जैसे
खींच गए हम सब उसकी ओर
मच गया सबके दिल में शोर.....
मिली इतनी खुशियाँ
जितनी सोची न थी उसने
लगा उसे कि उग आया है
जैसे सूरज अंधेरे में
खेलने लगी वह अपने दोस्तों के साथ
गई गीत खुशी की ले हाथों में हाथ ...
पूर्वा उत्तरेश्वर तन्मोर
पूर्वा उत्तरेश्वर तन्मोर
कक्षा सातवीं
एस.बी.ओ.ऐ.पब्लिक स्कूल
औरंगाबाद (महाराष्ट्र)
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7 पाठकों का कहना है :
सीधे-साधे शब्दों में सुन्दर सोच देखकर अच्छा लगा, बहुत-बहुत बधाई।
'पूर्वा' कविता देखकर हुआ पूर्वाभास
ये नन्हीं तितली छूयेगी एक रोज आकाश
तितली जैसे रंग भरें इसके जीवन में
खासी प्रतिभा लिये हुये बच्ची बचपन में
-
राघव
पूर्वा बाबू, आपकी कविता पढ़कर मजा आ गया,
बहुत अच्छा लिखा है,
ऐसे ही लगे रहो
सप्रेम
आलोक सिंह "साहिल"
लगा उसे कि उग आया है
जैसे सूरज अंधेरे में
वाह बेटा क्या बात है
पूर्वा बेटा
बहुत अच्छा लिखते हैं आप । ऐसे ही लिखते रहिए । आशीर्वाद सहित
पूर्वा , तुमने तो बड़ी हीं स्वीट कविता लिखी है। ऎसे हीं लिखा करो।
बधाईयाँ।
-विश्व दीपक
पूर्वा,
दुनिया रंगो से ज्यादा गुनों से जानी जाती है।
बहुत अच्छी कविता।
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