Monday, December 17, 2007

बाल कवि सम्मेलन की चौथी कविता...

मौसम बारिश का ...


बारिश का आना
मानो बचपन की याद सताना
वह पहली बारीश मैं कूदना -फिसलना
कागज़ की कस्तियाँ पानी मैं छोड़ना
हँसना - रोना , रोना फ़िर हँसना
कड़कती बिजलियों से डरकर गिरना
गिरकर संभलना व बारीश मैं भीगना
बारिश का आना मानो बचपन की याद सताना

बारिश का आना मानो बचपन की याद सताना
बीमार होना, सबकी डांट खाना
स्कूल से छुट्टी लेना
फ़िर गरम रजाई का आनंद लेना
बारिश का आना मानो बचपन की याद सताना

बारिश का आना मानो बचपन की याद सताना
पेडों पर चढ़ना ,हरियाली को छूना
वही मौसम बारिश का सुहाना
यादों के सावन का रिमझिम बरसना
मीठी बूंदों में नमी का घुल जाना
बारिश का आना मानो बचपन की याद सताना



अथर्व चंदोरकर
एस.बी.ओ.ए . पब्लिक स्कूल
औरंगाबाद महाराष्ट्र


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5 पाठकों का कहना है :

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बारिश का आना मानो बचपन की याद सताना
पेडों पर चढ़ना ,हरियाली को छूना
वही मौसम बारिश का सुहाना
यादों के सावन का रिमझिम बरसना

सच में आपकी इस प्यारी सी कविता ने मुझे बचपन की याद दिला दी :) बहुत सुंदर लिखा है आपने अर्थव

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

अर्थव तुम्हारी कविता बडों-बडों को उसका बचपन याद दिलाती है। बहुत अच्छी प्रस्तुति।

*** राजीव रंजन प्रसाद

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

क्या बात है अथर्व जी..
हमें आप पर है गर्व जी..

लिखते रहो .. बहुत बढिया लिख रहे हो..

भगवान खूब तरक्की दे..

Anonymous का कहना है कि -

अथर्व बाबु, बहुत ही प्यारी कविता, बचपन के बारिस के दिन याद आ गए,
आपको ढेर सारा प्यार और शुभकामना
आलोक सिंह 'साहिल"

अभिषेक सागर का कहना है कि -

अर्थव,

ईक और अच्छी प्रस्तुति के लिये बधाई

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