बाल कवि-सम्मेलन की सातवीं कविता..
मैं बीच समंदर
आती लहरें मेरे ऊपर
मैं डूब-डूब जाती इसके अन्दर
लहरें जाती मुझको छूकर
मछली भी तैरती मेरे साथ
मछली भी तैरती मेरे साथ
खुश होकर झूमने लगते हाथ
फिसल -फिसल वह जाती पार
कहती जैसे न मानूंगी हार
तब तक लहरें फ़िर से आती
मुझसे मछली दूर हो जाती
बीच समंदर से लहरें आतीं
अपने आप मैं खो जाती...
स्वरदा सुनील वेदमुथा
कक्षा चौथी
एस.बी.ओ.ए.पब्लिक स्कूल
औरंगाबाद (महाराष्ट्र)
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8 पाठकों का कहना है :
वाह स्वरदा! बहुत सुन्दर कविता लिखी है । और इसमें संदेश भी बहुत अच्छा दिया है । जीवन में हमेशा कठिनाइयों से संघर्ष करते रहना चाहिए । अगली कविता का इन्तज़ार रहेगा । आशीर्वाद सहित
बहुत ही सुंदर कविता लिखी है आपने ..खो गए हम भी इस में :)
बहुत अच्छे स्वरदा बाबु, बहुत ही प्यारा लिखा.
सप्रेम
आलोक सिंह "साहिल"
स्वरदा -ये तो मैंने नया नाम सुना----बहुत अच्छा है.
तुम्हारी कविता से जीवन में संघर्ष करते रहने का संदेश सब तक पहुंचेगा.
अभ्यास करती रहो-खूब पढ़ती भी रहो.
शुभकामनाएं-
मैं बीच समंदर
आती लहरें मेरे ऊपर
मैं डूब-डूब जाती इसके अन्दर
लहरें जाती मुझको छूकर
मछली भी तैरती मेरे साथ
खुश होकर झूमने लगते हाथ
काश, स्वरदा मैं भी तु्म्हारे साथ इतनी ही बेफिक्री से तैर पाती। लिखना छोडना नहीं शायद तुम नहीं जानती कि तुम कितना अच्छा लिखती हो।
कितनी आसानी से कह दी.....! काश मैं भी आप के साथ होती:-)
सुनीता यादव
वाह स्वरदा! आप तो बहुत अच्छा लिखतीं हैं! हमें आपकी कविता पसंद आई. ऐसे ही लिखतीं रहें.
वाह स्वरदा
बहुत सुन्दर कविता... एसे ही लिखते रहो
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