बाल कवि सम्मेलन की पाँचवी कविता...
नदियाँ
सब कुछ तुम्हे देती हूँ
कुछ न तुमसे लेती हूँ
जख्म तुम्हारे सहती हूँ
कल-कल कल-कल बहती हूँ ...
पर्वतों से पानी लाती हूँ
इंसानों को पिलाती हूँ
किसी को नही सताती हूँ
और सब के काम में आती हूँ
हरी-भरी खेत देख मुसकाती हूँ
पूरब की पुरवाई पश्चिम में सुनाती हूँ
सागर में मिल जाती हूँ
इसलिए एक मिसाल कहलाती हूँ ... .
कक्षा सातवीं
एस.बी.ओ.ए. पब्लिक स्कूल
औरंगाबाद महाराष्ट्र
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10 पाठकों का कहना है :
क्या बात है शुभम,
तुम्हरी कविता में भी नदी सा प्रवाह है..
नदी के परोपकार भाव को सुन्दर शब्द दिये हैं
जयेश जी तुसी भी बे-मिसाल हो..
बहुत बढ़िया लिखा है..
लिखते रहो..
शुभकामनायें
बहुत सुंदर लिखा है आपने शुभम ..नदी तो हमे जीवन देती है और आपने उसके महत्व को बहुत अच्छे से अपनी कविता में बताया है . .बेहद प्यारी कविता है यह आपकी .लिखते रहो,शुभकामनायें!!
इस प्यारी-प्यारी कविता के लिए शुभम को ढेर सारी बधाई।
शुभम बाबु, बहुत अच्छा लिखा आपने.यूं ही काव्य सरिता को प्रवाहित करते रहो.
सप्रेम
आलोक सिंह "साहिल"
बच्चों का प्रकृति प्रेमी होना भी बडी बात है यह साहित्य और पर्यावरण दोनो के लिये शुभ संकेत है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत अच्छे शुभम,बहुत सुंदर भाव हैं.
तुम्हें प्रकृति से प्रेम है, यह जानकर अच्छा लगा.
भविष्य में जब भी कविता लिखो तो अपनी हिन्दी टीचर से भी एक बार चेक करवा लिया करना.
एक ग़लती मुझे लगी -'हरी-भरी खेत ' की जगह 'हरा-भरा खेत' होना चाहिए.
तुम्हारी कविता पसंद आयी.
आगे के लिए भी बहुत सारी शुभकामनाएं और प्यार.
सब कुछ तुम्हे देती हूँ
कुछ न तुमसे लेती हूँ
जख्म तुम्हारे सहती हूँ
कल-कल कल-कल बहती हूँ ...
वाह ....बिल्कुल पहेली पुछने वाले अन्दाज़ में शुरूआत करी तुमने तो। बहुत सुन्दर लिखा है । उम्मीद है आगे भी अपनी कविता पढाऔगे।
शुभम....बधाई ...आप की कविता देखिये सबको अच्छी लगी ...मुझे भी..:-)
आगे भी लिखिए .....
सुनीता यादव
शुभम,
बहुत अच्छी कविता..
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