बाल कवि-सम्मेलन की छठवीं कविता..
आई थी मैं खुशियाँ बाँटने
चारों ओर सुख और हरियाली फैलाने,
चली मैं सागर से मिलने
उसमें जाकर खो जाने
चली मैं सागर से मिलने....
देकर मैं सबको जीवन
देखने तरु-लता का ताजा जीवन
मिटाने प्यास अपने संगन
दोस्ती अम्बर से करने
चली मैं सागर से मिलने....
मेरे अन्दर जीव हैं इतने
खुश होते वे भी कितने
उनकी भी रक्षा करने
अनंत सागर से मिलने
चली मैं सागर से मिलने....
मेरे अन्दर समाई चीजें
आ अहं हैं तुम्हे लुभाने
मोती, गोमेद, शंख बाँटने
जन-जन तक इन्हे पहुँचाने
चली मैं सागर से मिलने....
धर्म जात का भेद मिटाने
वन्य जगत की प्यास बुझाने
अपना कर्तव्य पूरा करने
सागा को यह अनुभव बताने
चली मैं सागर से मिलने....
चली मैं सागर से मिलने....
अवंती विजय देशमुख
कक्षा सातवीं
एस.बी.ओ.ए.पब्लिक स्कूल
औरंगाबाद (महाराष्ट्र)
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8 पाठकों का कहना है :
नदी विषय पर और एक कविता पढ़ कर ऐसा लगा बच्चे प्रकृति की सुन्दरता से बहुत जल्द प्रभावित होते हैं.
कविता नदी की भांति ही सुंदर और सरल है.
लिखते रहिये.
शुभकामनाएं.
विजय बेटा
तुमने बहुत अच्छी कविता लिखी है । जीवन में इसी प्रकार लिखते रहो यही आशीर्वाद है ।
नदी की कहानी आपकी जुबानी बहुत अच्छी लगी .लिखते रहे ...आपने लफ्ज़ बहुत अच्छे लिए हैं इस में !!
अवंती बाबु, इतनी छोटी उमर और इतनी व्यापक दृष्टि. बहुत ही प्यारा लिखा बाबु.
सप्रेम
आलोक सिंह "साहिल"
धर्म जात का भेद मिटाने
वन्य जगत की प्यास बुझाने
अपना कर्तव्य पूरा करने
सागा को यह अनुभव बताने
चली मैं सागर से मिलने....
चली मैं सागर से मिलने....
वाह अवंती ....तुमने तो बहुत अच्छी सीख दी है .आशा है कम से कम तुम तो इसे अपने जीवन मे अपनाऒगी।
अवंती ऐसे ही लिखती रहें
नदी अपना कर्तव्य करती है ..और लक्ष भी प्राप्त करती है ...आप भी ऐसे ही पढाई के साथ - साथ कविता लिखते रहिए...
सुनीता यादव
चली मैं सागर से मिलने!
बहुत खूब! त्याग की भावना के साथ जीवन जीने का आनंद अद्भुत है. इतनी व्यापक जीवनदृष्टि और सुंदर रचना के लिये बधाई!
अवंती...
बहुत अच्छा लिखा नदी पर...
बधाई
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