बाल कवि-सम्मेलन की आठवी कविता..
देखो-देखो आई -आई
अब वसंत ऋतू आई
पेड़-पेड़ पर फूल खिले
जैसे हो सब रंग मिले
वसंत ऋतू की हवा निराली
झूम रही हर डाली-डाली .
आओ सखी हम नाचे गायें ,
रंगों का त्यौहार मनाएँ .
भेद-भाव सब को भुलाकर
एक नई दुनिया रचाएं.
देखो-देखो आई -आई
अब वसंत ऋतू आई ...
- आरोही नांदेडकर
कक्षा सातवीं
एस.बी.ओ.ए.पब्लिक स्कूल
औरंगाबाद (महाराष्ट्र)
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5 पाठकों का कहना है :
आरोही डीयर..
सुन्दर कविता लिखती हो आप.. मेरा मन् झूम उठा कविता पढ़कर
वसंत ऋतू की हवा निराली झूम रही हर डाली-डाली . आओ सखी हम नाचे गायें , रंगों का त्यौहार मनाएँ .
बहुत ही प्यारी पंक्तियाँ...
बहुत बहुत शुभकामनायें और ढेर सारा प्यार
'आरोही' आरोही रखना जीवन की पतवार..
आरोही, आरोह का मतलब जानती हो ऊँचे दर ऊँचे चढ़ते जाना,तुम हमेशा यूँही ऊँची ऊँची कुलांचे भरती रहो,बहुत ही प्यारी और भेदभाव को मिटाने का संदेश देने वाली अच्छी कविता.
लगे रहो
सप्रेम
आलोक सिंह "साहिल"
बसंत ऋतु जैसी सौम्य ,सरल कविता.
आरोही ,बहुत सुंदर लिखा है.प्रकृति प्रेम बनाये रखिये.
लिखती रहिये -शुभकामनाएं और आशीष.
भेद-भाव सब को भुलाकर
एक नई दुनिया रचाएं.
देखो-देखो आई -आई
अब वसंत ऋतू आई ...
sunder सोच
आरोही,
क्या बढिया ऋतू है।
बहुत अच्छी कविता।
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