प्रश्न प्रगति का ..
आज हम फ़िर रौनक पारेख की कविता लेकर उपस्थित हैं।
चला है भारत प्रगति का शिखर छूने
पर यहाँ हैं इमानदार लोग गिने-चुने।
अशिक्षा ,जात-पात की है यहाँ भरमार
कहते हैं नेता प्रगति कर रहे हैं हर बार।
अपनी गलती तो वे मानते नहीं
कीमत किसान के मेहनत की जानते नहीं.
कई गांव में आज बिजली नहीं
कौन सुनता उन लाचारों की कहीं।
भेदभाव से हमें है मुँह फेरना
भ्रष्टाचार को है मिलकर घेरना।
जनसंख्या व प्रदूषण को फैलने से रोकेंगे
हर लाइलाज बीमारी को दूर भगाएंगे।
विज्ञान के दम पर हम बढेंगे आगे
देंगे हर चीज जो दुनिया मांगे।
नई सोच और विचार से भारत बनेगा प्रगतिशील
क्या प्रश्न प्रगति का यह
आप को लगता है मुश्किल? .
रौनक पारेख
एस. बी. ओ ए. पब्लिक स्कूल
औरंगाबाद
महाराष्ट

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8 पाठकों का कहना है :
अच्छा है रौनक
रौनक,
तुम्हारी ईक और अच्छी रचना के लिये बधाई
बढिया रोनक बढिया
बहुत बढिया.. लिखते रहो..
एक दिन श्रंग पर होगे..
मेरी हार्दिक शुभकामनायें
अच्छी रचना है रौनक। ऎसे हीं लिखते रहो।
-V.D.
बहुत बहुत सुंदर रौनक बहुत अच्छा लिखा है !!
प्यारे रौनक आपने भ्रष्टाचार विषय पर जो प्यारी रचना करी है उसके लिए बहुत बहुत बधाई.
प्यार समेत
अलोक सिंह "साहिल"
बहुत अच्छे, रौनक! आपके विचार और रचना दोनों बहुत पसंद आये.
हार्दिक बधाई!
रौनक,
अच्छा लिखा है--आप की सोच सोचने पर मजबूर करती है-
लिखते रहिये ---
अन्य विषयों पर भी अपनी सोच को शब्दों का जामा पहनाएं-
धन्यवाद-
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