अख़बार

सुबह उगते सूरज के संग
चला आता है यह अखबार
दुनिया भर की सब ख़बरो को
ख़ूब मज़े से सुनाता अख़बार
सूरज के निकलते ही दादा बाहर बैठ जाते
दादी को पढ़ के ख़बरे ख़ूब मज़े से वो सुनाते
पापा को चाय के संग भाता है अपना अख़बार
रात रात भर छप के सुबह सबको खबर सुनाता अखबार
खेल कथा कहानी किस्से और लगाये ख़बरों का अम्बार
दुनिया भर के मौसम का भी हाल सुनाता है अखबार
घर बैठे हम सब पढ़ लेते जान लेते जगत का हाल
ऐसा प्यारा ऐसा दुलारा यह सबका है अखबार !!

आपको ककड़ी-खाना पसंद है ना! पढ़िए शन्नो आंटी की कविता
सर्दी का मौसम शुरू होने वाला है। इस मौसम में हम क्या भूत भी ठिठुरने लगते हैं।
क्या आपने कभी सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान की सैर की है? क्या कहा?- नहीं?
कोई बात नहीं, चलिए हम लेकर चलते हैं।
क्या आप जानते हैं- लिखने से आँखें जल्दी नहीं थकती, पढ़ने से थक जाती हैं क्यों?
अपने मिसाइल मैन अब्दुल कलाम के बारे में रोचक बातें जानना चाहेंगे? बहुत आसान है। क्लिक कीजिए।
तस्वीरों में देखिए कि रोहिणी, नई दिल्ली के बच्चों ने गणतंत्र दिवस कैसे मनाया।
आपने बंदर और मगरमच्छ की कहानी सुनी होगी? क्या बोला! आपकी मम्मी ने नहीं सुनाई। कोई प्रॉब्लम नहीं। सीमा आंटी सुना रही हैं, वो भी कविता के रूप में।
एक बार क्या हुआ कि जंगल में एक बंदर ने दुकान खोली। क्या सोच रहे हैं? यही ना कि बंदर ने क्या-क्या बेचा होगा, कैसे-कैसे ग्राहक आये होंगे! हम भी यही सोच रहे हैं।
पहेलियों के साथ दिमागी कसरत करने का मन है? अरे वाह! आप तो बहुत बहुत बहादुर बच्चे निकले। ठीक है फिर बूझिए हमारी पहेलियाँ।
बच्चो,
मातृ दिवस (मदर्स डे) के अवसर हम आपके लिए लेकर आये हैं एक पिटारा, जिसमें माँ से जुड़ी कहानियाँ हैं, कविताएँ हैं, पेंटिंग हैं, और बहुत कुछ-
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11 पाठकों का कहना है :
रंजना जी,
अखबार पर अच्छी प्रस्तुति है। बच्चों को कंठस्त करते मज़ा भी आयेगा और जानकारी भी मिलेगी। बहुत बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
रंजू दी का प्यार मिला
सुबह-सुबह अखबार मिला
कैसा है मौसम का मिजाज
कौन खेल में जीता आज
खबरों का अम्बार मिला
सुबह-सुबह अखबार मिला
रंजू द ग्रेट..
अगली कविता/पाती का
बेसब्री से वेट..
-धन्यवाद
ह्म्म्म्म...
बहुत सुंदर है अखबार
अच्छी रचना है जी
अवनीश तिवारी
रंजू जी
सीधे सादे शब्दों में बहुत सुंदर रचना. बच्चों के लिए लिखना बहुत मुश्किल होता है लेकिन आप ने किस सरलता से इसे अंजाम दिया है. बधाई
नीरज
कमाल है भई. आप क्या क्या लिख लेती हैं !!!!!! बड़ा ही कठिन है ये .... मज़ा आ गया.
बहुत खूब!
इस बार दीदी की पाती का क्या हुआ चलो अखबार की महिमा भी अच्छी करी है आपने
रंजना जी,
क्या बढिया अखबार है....
रंजू जी,इतनी प्यारी बाल-कविता ! निशित तौर पर यह बच्चों को पसंद आयेगी.
अलोक सिंह "साहिल"
रंजना जी,
सीधे सादे शब्द समेटे हुए यह सरल सी कविता बच्चों को भाएगी और ख़ास कर इस में जो चित्र हैं वे कविता को और भी रोचक बना रहे हैं.धन्यवाद .
जी बढिया है.. अपुन के घर भी रोज सुबह अखबार आता है... मगर क्या करें शाम को ही पढ पाते हैं वो भी खाना खाते खाते या टी वी देखते देखते.....बीबी को नाराज कर के.....
सुन्दर रचना... बधाई
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