चिड़ियों का अलार्म
बच्चों, हम दिन प्रतिदिन प्राकृतिक वातावरण से दूर होते जा रहे हैं और गैजेटस (Gadgets) की गिरफ्त में आते जा रहे हैं। यहां तक कि सुबह उठने के लिए भी हम अलार्म क्लॉक के गुलाम हो चले हैं। जबकि एक समय था जब हम चिडियों की चहचहाहट को सुनकर ही उठ जाया करते थे। उस अलार्म को याद करके मैंने एक नन्हीं सी कविता लिखी है। आप भी सुनिए और बताइए कि कैसी लगी आपको।
सुबह-सुबह ही मेरी बगिया
चिड़ियों से भर जाती है
उनके चीं-चीं के अलार्म से
नींद मेरी खुल जाती है।
वे कहतीं हैं उठो उठो
अब हुआ सबेरा जागो
उठ कर अपना काम करो
झटपट आलस को त्यागो।
मूल्यवान जो समय गंवा कर
बहुत देर तक सोते
प्यारे बच्चों जीवन में वह
अपना सब कुछ खोते।
शरद तैलंग
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