Saturday, May 15, 2010

नन्हे-नन्हे चूजे



नन्हे-नन्हे चूजे हैं, प्यारी-प्यारी मुर्गियाँ,
मन को लुभा रही हैं लाल-लाल कलगियाँ।

कुकड़-कूँ कर के दाना हैं खा रही,
साथ-साथ चूजों को अपने खिला रहीं,
दे रही हैं बीच-बीच ममता की झलकियाँ।

उड़ने की लालसा में पंख हैं फैला रहीं,
दड़बे से निकल कर दूर-दूर जा रहीं,
बंद की चुन्नू ने डर कर थी खिड़कियाँ ।

गर्म-गर्म गोल-गोल अंडे हैं दे रहीं,
रोज-रोज खाने का न्यौता भी दे रहीं,
सर्दी हो, वर्षा हो या हो फिर गर्मियाँ

डॉ॰ अनिल चड्डा


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3 पाठकों का कहना है :

neelupakhi का कहना है कि -

अनिल जी आप कहाँ थे ???????????????????????

आप के पहाड़े कहाँ हैं अभी १० तक पूरे नहीं हुए हैं

सन्डे हो या मंडे रोज खाएं अंडे ......................अच्छी कविता

Mrityunjay Kumar Rai का कहना है कि -

nice


http://madhavrai.blogspot.com/
http://qsba.blogspot.com/

डॉ० अनिल चड्डा का कहना है कि -

neelamji,

pichhale dino mein videsh mein tha. Shesh pahade bhi bheju ga.
kavita aapko pasand aayee, uska shukriya

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