नन्हे-नन्हे चूजे
नन्हे-नन्हे चूजे हैं, प्यारी-प्यारी मुर्गियाँ,
मन को लुभा रही हैं लाल-लाल कलगियाँ।
कुकड़-कूँ कर के दाना हैं खा रही,
साथ-साथ चूजों को अपने खिला रहीं,
दे रही हैं बीच-बीच ममता की झलकियाँ।
उड़ने की लालसा में पंख हैं फैला रहीं,
दड़बे से निकल कर दूर-दूर जा रहीं,
बंद की चुन्नू ने डर कर थी खिड़कियाँ ।
गर्म-गर्म गोल-गोल अंडे हैं दे रहीं,
रोज-रोज खाने का न्यौता भी दे रहीं,
सर्दी हो, वर्षा हो या हो फिर गर्मियाँ
डॉ॰ अनिल चड्डा
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3 पाठकों का कहना है :
अनिल जी आप कहाँ थे ???????????????????????
आप के पहाड़े कहाँ हैं अभी १० तक पूरे नहीं हुए हैं
सन्डे हो या मंडे रोज खाएं अंडे ......................अच्छी कविता
nice
http://madhavrai.blogspot.com/
http://qsba.blogspot.com/
neelamji,
pichhale dino mein videsh mein tha. Shesh pahade bhi bheju ga.
kavita aapko pasand aayee, uska shukriya
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