Sunday, May 23, 2010

बगुले और मछलियाँ



बगुलों ने ऊपर से देखा
नीचे फैला छिछला पानी
उस पानी में कई मछलियाँ
तिरती-फिरती थी मनमानी


सातों अपने पर फडकाते
उस पानी पर उतर पड़े
अपनी लम्बी -लम्बी टांगों
पर सातों हो गए खड़े

खड़े हो गए सातों बगुले
पानी बीच लगाकर ध्यान
कौन खड़ा है घात लगाए
नहीं मछलियां पायीं जान

तिरती -फिरती हुई मछलियां
ज्यों ही पहुंची उनके पास ,
उन सातों ने सात मछलियां
अपनी चोंचों में ली फाँस

पर फड़काकर ऊपर उठकर
उड़े बनाते एक लकीर
सातों बगुले ऐसे जैसे
आसमान में छूटा तीर

हरिवंशराय बच्चन

इस कविता को आप नीलम आंटी की प्यारी आवाज़ में सुन भी सकते हैं। नीचे का प्लेयर चलायें।


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पाठक का कहना है :

Mrityunjay Kumar Rai का कहना है कि -

nice

http://madhavrai.blogspot.com/

http://qsba.blogspot.com/

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