बाल-स्वप्न...
आज सुबह जब गया बगीचे
नज़र पड़ी जैसे ही नीचे
देखा मैने कार खिलौना
छुपा हुआ एक पेड़ के पीछे
मैने खुद को तनिक संभाला
जोर खोपड़ी पर कुछ डाला
कहीं यार कोई बम ना हो ये
हो सकता है, कुछ कर लाला
मै जल्दी से गया लपककर
पुलिस की गाड़ी खड़ी जहाँ पर
बोला, अंकल साथ चलों जी
कुछ वस्तु सन्दिग्ध वहाँ पर
पुलिस तुरंत हरकत में आयी
साथ में चल दिये कई सिपाही
वायरलैस कर दिया कहीं पर
बम निरोधक टुकड़ी आई
सबको दूर दूर कर दिया
गहन निरीक्षण बम का किया
गया पास में एक सिपाही
बम को कर दिया निष्क्रिय भाई
दुर्घटना एक और घट जाती
कार खिलौना यदि फट जाती
बुद्धि से गर काम ना लेता
जमीं शवों से फिर पट जाती
बच्चों ये है रात का सपना
बुद्धि विवेक ना खोना अपना
सच में भी सम्भव है यह सब
रहना होगा बस चौकन्ना
अर्रे आगे भी तो सुनो...
सबने मुझको दी शाबाशी
भीड़ जमा थी अच्छी खासी
फूल गया मेरा गर्व से सीना
आखिर हम सब भारतवासी
भारत माता की जय..
25-09-08
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2 पाठकों का कहना है :
सम -सामयिक कविता है ,अच्छी कविता है |
बाल-रचनाएँ लिखने में राघव जी आपका जवाब नहीं। बाल-कविता लिखना बहुत मुश्किल है, लेकिन आप सफल हैं।
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