वृक्ष
पल पल बढ़ा प्रदूषण जाता,
प्राण वायु में घुलता जाता,
वृक्षों को है काटा जाता,
जंगल को सिमटाया जाता ।
जीवन यापन जिससे पाते,
नष्ट उसी को हम कर जाते,
नियम प्रकृति के हमें न भाते,
उपकार इनका भूल जाते ।
विष पीकर यह हमें बचाते,
दे अमृत सदा प्राण बचाते,
परहित धर्म प्रतिपल निभाते,
फल, फूल, छांव सब हैं पाते ।
धरती का श्रृंगार तुम्ही हो,
जीवन का आधार तुम्ही हो,
विहगों का संसार तुम्ही हो,
बच्चों का आकाश तुम्ही हो ।
प्राणी को वरदान तुम्ही हो,
राही को आराम तुम्ही हो,
औषधि का आयाम तुम्ही हो,
दानियों में महान तुम्ही हो ।
आओ मिल सब पेड़ उगाएँ,
इस धरती पर स्वर्ग बसाएँ,
हरा भरा हम देश बनाएँ,
जग में फिर खुशियां बिखराएँ ।
कवि कुलवंत सिंह
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3 पाठकों का कहना है :
Sundar kavita.
अच्छा नारा दिया है कुलवंत जी आपने
Bahut achche kavi ji .Aaj samay ki maang hai ki ham sab apane paryavaran ko bachaane ke liye jaagriti abhiyaan chalaayen .
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