मेरे नाना, मेरे नाना, अच्छी सी तुम टॉफी लाना
मेरे नाना, मेरे नाना,
जब मैं तुम से कहता हूँ कि,
अच्छी सी तुम टाफी लाना,
कहते हो क्यों ना, ना, ना, ना !
रोज सुबह जब उठता हूँ तो,
दाँत माँजने को हो बुलाते,
प्यार से फिर तुम गोद में ले कर,
मुझको हो तुम दूध पिलाते,
ना-नुकर जब करता हूँ,
लाली-पाप हो मुझे दिखाते,
वैसे ग़र मैं माँगू टाफी,
करते हो तुम ना, ना, ना, ना ,
ऐसा क्यों करते हो नाना !
सुनो ऐ मेरे प्यारे बच्चे,
तुम हो अभी अक्ल के कच्चे,
ढेर-ढेर सी टाफी खा कर,
दाँत तुम्हारे होंगें कच्चे,
ग़र टाफी ज्यादा खाओगे,
मोती-से दाँत सड़ाओगे,
चबा-चबा कर फिर ये बोलो,
खाना कैसे खाओगे?
तभी तो कहता मैं हूँ तुमको,
कम से कम टाफी तुम खाना,
नुक्सान नहीं दाँतों को पहुँचाना,
नाना की तुम बात को मानो,
टाफी तुम ज्यादा न खाना,
टाफी तुम्हे तभी मिलेगी,
बोलो जब तुम हाँ, हाँ, नाना।
डॉ॰ अनिल चड्डा
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7 पाठकों का कहना है :
बच्चों को शिक्षा देती बहुत ही सुन्दर कविता
धन्यवाद
कविता पल कल मजा आ गया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
दिशा एवं तस्लीमजी,
कविता पसन्द आई, जान कर अच्छा लगा । आभार ।
नियंत्रक महोदय कृपया टापी को सही करके टाफी करें..
टोपी वालों को टेंशन होती है..
:)
बालोपयोगी सरस कविता
हुत खूब कविता सुंदर लिखा है
सादर
रचना
मेरे नाना, मेरे नाना,
जब मैं तुम से कहता हूँ कि,
अच्छी सी तुम टाफी लाना,
कहते हो क्यों ना, ना, ना, ना !
बच्चों के लिए एक सुन्दर सी कविता
प्रेरणा देने वाली कहानी है
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