धरती
तितली भौंरे इस पर झूमें रोज हवाएं इसको चूमें | |
चंदा इसका भाई चचेरा बादल के घर जिसका डेरा | |
रोज लगाती सूरज फेरा रात कहीं है, कहीं सवेरा | |
पर्वत, झील, नदी, झरने नित पड़ते पोखर भरने | |
लोमड़, गीदड़ शेर-बघेरे करते निशि-दिन यहां चुफेरे | |
बोझ हमारा जो है सहती वही हमारी प्यारी धरती |
--श्याम सखा 'श्याम'
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2 पाठकों का कहना है :
बहुत ही सुंदर लिखा है,,,,
चंदा इसका भाई चचेरा
बादल के घर जिसका डेरा
क्या खूब रिश्तेदारी बताई है आपने. रचना के लिए बधाई.
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