आलू-गोभी का वार्तालाप
आलू बोला गोभी से,
मुझसे तू न टकराना,
मैं हूँ सब्जियों का राजा,
मेरे रस्ते से हट जाना।
बोली गोभी आलू से,
मैं हूँ सब्जियों की रानी,
ग़र आयेगा मेरे रस्ते,
याद तुझे आयेगी नानी।
आलू बोला चल बड़बोली,
मुझसे बनें बहुत पकवान,
तुझसे बस सब्जी या पराठे,
मुझ बिन नहीं तेरी पहचान।
गोभी बोली मेरे पराठे,
स्वाद भरे हों सबसे करारे,
तेरे पराठे ढीले-ढाले,
बड़े यत्न से मुँह में डालें।
आलू बोला सुन ऐ गोभी,
मुझको चाहे किचन की रानी,
हर पल मुझको साथ में रखते,
मम्मी, बेटी या हो नानी।
उबले आलू, सूखे आलू,
आलू-टमाटर, मटर संग आलू,
दम आलू या मेथी-आलू,
व्रत में भी तुम खालो आलू।
गर्मी में आलू, सर्दी में आलू,
हर कोई चाहे आलू पा लूँ,
हर सब्जी संग स्वाद नया है,
हर सब्जी संग चले है आलू।
गोभी बोली जो तुझे खाये,
पीछे खाने के पछताए,
इसमें इतना स्टार्च भरा है,
झटपट सबकी शुगर बढ़ाये।
गोभी से बोला फिर आलू,
पोल तेरी कुछ मैं भी खोलूँ,
जो तुझको ज्यादा खा जाये,
रोये, दर्द मैं कैसे झेलूँ ।
गोभी-आलू की ये लड़ाई,
खत्म नहीं होने को आई,
चाकू मम्मी जी ने उठाया,
काट के दोनों सब्जी बनाई।
आलू गोभी की सब्जी ने,
हमको था ये सबक सिखाया,
आपस में लड़ने से बच्चो,
दूजे ने था फायदा उठाया।
--डॉ॰ अनिल चड्डा
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6 पाठकों का कहना है :
बहुत ही बढिया रचना
मुह में पानी आ गया
गोभी-आलू की ये लड़ाई,
खत्म नहीं होने को आई,
चाकू मम्मी जी ने उठाया,
काट के दोनों सब्जी बनाई।
..........अब कर लो लड़ाई
चड्डा जी कविता के अंत में सीख देने का आपका अंदाजा बढ़िया लगता है.
आलू गोभी की सब्जी ने,
हमको था ये सबक सिखाया,
आपस में लड़ने से बच्चो,
दूजे ने था फायदा उठाया।
दिशाजी, रश्मिजी एवँ शमीख़ जी,
आप सबको कविता अच्छी लगी, बहुत-बहुत शुक्रिया । शमीख़ जी, मेरी कोशिश रहती है कि बच्चों को कविता के माधयम से कोई सीख भी मिले ।
बहुत बढिया बाल गीत .. इतने व्यंजनों का नाम आया .. कि मुंह में पानी आना ही !!
अनिल जी,
हाय राम! गोभी तो बहुत लड़ाका निकली......सब्जियों के राजा की ऐसी - तैसी कर डाली उसने तो. लगता है की आप को recipes में दिलचस्पी हो गयी है. जानकर अच्छा लगा. कविता भी बढ़िया है.
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