परीक्षा का भूत
बच्चों, परीक्षा का भूत भयानक होता है। यह सच भी है,कि परीक्षा डरावनी होती है लेकिन बच्चों को उस भूत से बचना चाहिए। यह माना जाता है कि जहाँ अज्ञानता है, वहीं भय होता है और भय का नाम ही भूत है।अक्सर देखा जाता है कि बच्चे समय पर अपनी पढाई पूरी नही करते और परीक्षा के समय परेशान होते हैं। पढाई का सारा बोझ एक साथ लेकर थक जाते हैं और कभी-कभी बीमार भी पड जाते हैं। बच्चों का खाना-पीना,सोना-उठना,खेलना-कूदना सब बंद हो जाता है और बच्चे भारी दबाव महसूस करने लगते हैं।ज्यों-ज्यों परीक्षा के दिन नज़दीक आने लगते हैं,उन्हें भय सताने लगता है। यही भय धीरे-धीरे भयंकर होकर भूत बन जाता है।अत: बच्चों को चाहिए कि वे अपना काम समय पर करते रहें। कुछ बच्चे ट्य़ूशन के नाम पर समय और पैसा बर्बाद करते हैं। उनके माता-पिता को भी लगता है कि स्कूलों में अब पढाई-लिखाई तो होती नही,अत: ट्य़ूशन जरूरी है। यह भी गलत बात है। आज भी स्कूलों में पढाई बेहतर हो रही है। हाँ लोगों का नज़रिया जरूर बदल गया है। आज प्रतियोगिता के दौर में माता-पिता की महत्वाकांक्षा इतनी बढ गई है कि उन्हें किसी पर भरोसा ही नही रहा। स्कूल,शिक्षक के साथ-साथ वे अपने बच्चों की क्षमताओं से भी सशंकित हैं। परंतु यह ट्यूशन की प्रवृत्ति बच्चों को परजीवी बना दे रहा है। इस कारण बच्चे अपना आत्मविश्वास खो दे रहे हैं।माता- पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों का हौसला बढाएँ।
यह नही कि उन्हे डराएँ, डाँट-फटकार करें, उन्हें किसी चीज़ का लालच दें बल्कि उनकी भाग्यवादी सोच को बदलें और उन्हें परिश्रम के लिए उत्साहित करें।बच्चों को बाहरी प्रभाव से भी बचाए रखने की जरूरत है,क्योकि समाज में जो सामाजिक-साँस्कृतिक परिवर्तन दिखाई पड रहा है, वह क्षणिक आनंददायी हो सकता है परंतु वह जीवन का आधार नही बन सकता। माता-पिता को भी बच्चों और शिक्षकों के बीच एक कडी के रूप में जुडे रहना चाहिए। स्कूलों में दाखिला के बाद भी माता-पिता का दायित्व बना रहता है क्योकि बच्चों को दी जाने वाली सुविधाएँ,घर का वातावरण, सामाजिक प्रभाव आदि का बच्चों पर गहरा प्रभाव पडता है। बच्चा कहाँ-कहाँ जाता है,कहाँ-कितना समय बिताता है, उसके मित्र मंडली के साथी कैसे हैं, उसका शिक्षक से व्यवहार कैसा है, क्या ट्य़ूशन जरूरी हैऔर उसका लाभ हो रहा है? बच्चों की रूचि और आदतों में क्या परिवर्तन आया है? उसकी शैक्षिक प्रगति कैसी है? आदि बातों पर माता-पिता को नज़र रखनी चाहिए। परीक्षा के समय उन्हें चाहिए कि घर के वातावरण में संजीदगी लाएँ और माहौल को बच्चों के अनुकूल बनाएँ, थोडा ही सही बच्चों के साथ बैठें, उनसे बातें करें, उन्हें अधिकाधिक दबाव से बाहर निकालें
बच्चों, यह जरूरी है कि परीक्षा के समय आप अपना संतुलन न खोएँ, अपनी क्षमता पर भरोसा रखें,अपना काम समय पर करते रहें,पूरी नींद लें, ईमानदारी से मेहनत करें, अन्यान्य कार्यों में अपना समय नष्ट न करें,
संतुलित आहार लें, परीक्षा से भयभीत न हों,अति भाग्यवादी न बनें, निश्चित ही आप परीक्षा में अच्छा कर सकते हैं। इन्हीं सुझावों व शुभकामनाओं के साथ्.............
नंदन
बचेली , बस्तर ( छ.ग.)
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9 पाठकों का कहना है :
माता-पिता को भी बच्चों और शिक्षकों के बीच एक कडी के रूप में जुडे रहना चाहिए। स्कूलों में दाखिला के बाद भी माता-पिता का दायित्व बना रहता है क्योकि बच्चों को दी जाने वाली सुविधाएँ,घर का वातावरण, सामाजिक प्रभाव आदि का बच्चों पर गहरा प्रभाव पडता है। बच्चा कहाँ-कहाँ जाता है,कहाँ-कितना समय बिताता है, उसके मित्र मंडली के साथी कैसे हैं, उसका शिक्षक से व्यवहार कैसा है, क्या ट्य़ूशन जरूरी हैऔर उसका लाभ हो रहा है? बच्चों की रूचि और आदतों में क्या परिवर्तन आया है? उसकी शैक्षिक प्रगति कैसी है? आदि बातों पर माता-पिता को नज़र रखनी चाहिए।
" a good write up expaling the real reasponsiblities of parents , which usually parents are forgeting in their bussy routine and fast life. after reading it, i too realised that it is applicable on me also somewhere. this type of articles are really helpful to bring us back on the true phase of life that "yes" childrens do need us on every stepalong with the teacher and school"
Very good n inspiring write up.
Regards
नन्दन जी,
बहुत ही उपयोगी लेख...
बहुत बहुत धन्यवाद..
नन्दन जी
बहुत ही उपयोगी जानकारी दी आपने । और बिल्कुल सही कहा कि परीक्षा को भूत ना समझें । बच्चों को इसप्रकार की जानकारी की महती आवश्यकता है । इतनी सरल भाषा में इतना कुछ बताने के लिए बधाई ।
this one is very good post, my mummy also read this, she liked it.yes a student should do lot of hardwork, then he can suceed.
roopa, ix a
kv bacheli
नंदन जी,आपने विषय एक दम सही और सही वक्त पर चुना है.अच्छा लेख है.
*लेकिन एक सुझाव देना चाह रही हूँ-
अगर आप इसे दो हिस्से में बाँट देते जैसे--बच्चों के लिए सुझाव-और अभिभावकों के लिए- अलग से इन्हे क्रम बद्ध कर देते तो सारा लेख बहुत ही व्यवस्थित हो जाता .
यह तो सही बात है आजकल बच्चो के साथ माता पिता को भी सीख लेनी चाहिये.. नही तो बच्चे हमसे दूर हो जायेगे
बहुत ही लाभप्रद लेख. धन्यवाद
आलोक सिंह "साहिल"
Sir,this is one of the fantastic articles I have ever read.I think this is very useful information you have given to everyone of us through this article.
THANKYOU SIR!
Teja
IX-A
bacheli
SIR,THANKS I WILL FOLLOW YOUR NICE ADVICES BY HEART FOR MY BRIGHT FUTURE .WITH REGARDS. SHILPI GUPTA.IX A
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