Wednesday, January 9, 2008

बाल कवि-सम्मेलन की दसवी कविता..

कल हो न हो

हरे-भरे पेड़ों का आनंद क्यों नहीं लेते,
इस घने जंगल में खो क्यों नहीं जाते
इसका आनंद तुम अभी लूट लो
राम जाने कल हो न हो....

हरे-भरे पेड़ हैं इन्हे बरबाद न करो
कई तरह के प्राणी हैं
इन्हे मारने का पाप न करो
राम जाने कल हो न हो....

चिदियाँ गुन -गुन गाती हैं
कोयल गीत सुनाती हैं
इनको तुम सुनते रहो
पेड़ लगाने को कहते रहो
राम जाने कल हो न हो....


ऋषिकेश अ. पारधे
कक्षा नौवीं
एस.बी.ओ.ऐ. पब्लिक स्कूल
औरंगाबाद (महाराष्ट्र)


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6 पाठकों का कहना है :

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत सुंदर गीत सी लगी आपकी कविता ..सुंदर लिखा है ....लिखते रहे :)

Anonymous का कहना है कि -

पारधे बाबू, बहुत अच्छी कविता लिखी.ऐसे ही लगे रहिए
सप्रेम
आलोक सिंह "साहिल"

seema gupta का कहना है कि -

हरे-भरे पेड़ों का आनंद क्यों नहीं लेते,
इस घने जंगल में खो क्यों नहीं जाते
इसका आनंद तुम अभी लूट लो
राम जाने कल हो न हो....
" beautifully composed with a good moral"
keep it up.

विश्व दीपक का कहना है कि -

क्या बात है ॠषिकेश!
बड़े हिं सुंदर विचार, भाव एवं शब्द!
बधाई स्वीकारो।

-विश्व दीपक

अभिषेक सागर का कहना है कि -

ऋषिकेश
क्या अच्छे भाव है।

बहुत अच्छी बात है कि आज का युवा वर्ग पडो के महत्व को समझ रहा है

Alpana Verma का कहना है कि -

ऋषिकेश , आप के विचार बहुत नेक हैं. कविता अच्छी लिखी है.
आप जैसा सब को सोचने की जरुरत है.और वृक्षों को कटने से बचाना है. पर्यावरण को संतुलित और सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी सब की है.
लिखते रहो....शुभकामनाएं

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