एक सुखी राष्ट्र
होता अगर ऎसा कोई राष्ट्र,
जहाँ न होता कोई भी भ्रष्ट।
जनता भी होती अनुशासित,
न होता उन्हें दु:ख-कष्ट॥
जाति-पाति का भेद न होता,
धनी-दीन का ना अंतर ।
धैर्य , धर्म और क्षमाशीलता,
होते उनके मूल मंतर ( मंत्र) ॥
लाठी, डंडा, भाला , बरछी
का न होता नामो-निशान।
सच्चरित्रता और कर्मों से
हीं होती उनकी पहचान ॥
युद्ध का कहीं नाम न होता,
होती शांति उधर-इधर।
मानव कभी नहीं समझता
किसी को अपने से इतर( दूसरा) ॥
भय, गरीबी और प्रदूषण को
मिला होता जहाँ निर्वासन ।
मानव-कर्ण बाध्य न होते-
सुनने को झूठे भाषण ॥
कीट, विहग, हस्ती या घोटक
करते सुखमय जीवन व्यतीत।
मानव-सुलभ कुकॄत्य न होते,
प्रेम हीं होती असली रीत ॥
पर ऎसा संभव भी होगा,
बता दे तू , मेरे भगवान ।
'हाँ' भरे उत्तर सुनने को
तरस रहे हैं मेरे कान ॥
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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8 पाठकों का कहना है :
Switzerland
सुंदर कविता एक सुंदर आशा के साथ लिखी हुई !!
पर ऎसा संभव भी होगा,
बता दे तू , मेरे भगवान ।
'हाँ' भरे उत्तर सुनने को
तरस रहे हैं मेरे कान ॥
" hmm nice poetry full of trust n belief that it could ever happen. good thoughts"
Regards
तन्हा जी एक सुंदर urjawan कविता
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"
बहुत सुन्दर कविता..
बहुत बहुत बधाई
तन्हा जी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति । बधाई
बहुत नेक ख्वाहिश की है.ईश्वर करे आप की कामना पूरी हो.
कविता भी अच्छी बनी है.बधाई
बहुत अच्छा सपना....
काश आपका सपना सच हो जाये हम भगवान से यही दुआ करते है
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