फूल मुस्कारने लगे
हर दोपहर बच्चे स्कूल से आ के एक बाग़ीचे में खेलते....वो बाग़ एक राक्षस का था| कई महीनों से वो अपने दोस्त के घर गया था सो बच्चों की मौज़ बन आई और वो वहाँ जा के खेलते यहाँ कई फूल थे पेड़ थे जो वसंत आते ही खिल जाते ख़ूब फल लग जाते पक्षी इन पर आ के चहचाहते और बच्चे उनके साथ मिल कर गीत गाते|
एक दिन राक्षस वापस आ गया| वो ज़्यादा बोलता नही था पर ग़ुस्सा बहुत करता था। उसने जब बच्चों को वहाँ खेलते देखा तो उसको ग़ुस्सा आ गया। उसने कहा यह बाग़ीचा मेरा है यहाँ से भाग जाओ, यहाँ फिर आए तो मैं तुम सब को मार दूँगा। गंदा राक्षस कह कर बच्चे वहाँ से डर के भाग गये।
बेचारे बच्चे अब कहाँ खेलते? उनके पास कोई जगह ही नही बची। वो सड़क पर खेलते तो वहाँ उनको डर लगता की कोई कार उनको मार ना दे। सब एक-दूसरे से कहते की हम सब कितने ख़ुश थे वहाँ। फिर वसंत ऋतू आई, सब जगह फूल खिले पर राक्षस के यहाँ वसंत नही आया। वहाँ सर्दी थी अभी भी, पेड़-फूल खिलना भूल गये। एक बार एक सुंदर फूल ने घास से सिर बाहर निकाला परन्तु जैसे ही देखा की यहाँ कोई बच्चा नही है वो दुबारा ज़मीन के नीचे जा के सो गया। राक्षस को सर्दी से बहुत नफ़रत थी। वह ओलो, बर्फ़ और ठंडी हवा से बहुत तंग हो जाता।
सिर्फ़ ख़ुश थे तो बर्फ़ और पाला की वसंत इस बाग़ को भूल गयी, अब हम यहाँ रहेंगे। उसने सफ़ेद बर्फ़ की चादर से सब ढ़क दिया उधर वो राक्षस बहुत परेशान था की वसंत क्यूं नही आया उस के बाग़ में। वो उदास एक दिन अपने बिस्तर पर लेटा था की उस को एक मीठे से गाने की आवाज़ आई। उसने बाहर जा के देखा तो एक चिड़िया गाना गा रही थी। उसको बहुत अच्छा लगा। आख़िर उसके बाग़ में वसंत आ ही गया। तभी उसने देखा की उसके बाग़ की दीवार में एक बड़ा सा छेद है और सब बच्चे वहाँ से अंदर आ गये हैं, फूल खिल गये, पेडो पर फल लग गये हैं। सिर्फ़ एक कोने मैं अभी भी सर्दी थी। वहाँ एक छोटा सा बच्चा खड़ा था। वो पेड़ पर चढ़ नही पा रहा था। राक्षस ने मन में सोचा की मैं भी कितना गंदा हूँ, स्वार्थी हूँ, बच्चो को क्यू रोका मैने यहाँ आने से। उसने उस छोटे बच्चे को उठाया और पेड़ पर बिठा दिया। वो कोना भी फूलों से महक उठा। उस छोटे से बच्चे ने उस राक्षस को प्यार किया तो ख़ुश हो गया और बोला -
"बच्चू! आज से यह बाग़ तुम्हारा है, तुम हर वक़्त यहाँ खेल सकते हो"
वो अब हर मौसम से प्यार करता, सर्दी से भी, क्यूं की वो जानता था की सोई हुई वसंत ऋतू ही सर्दी होती है, उस वक़्त फूल आराम करते हैं और वसंत तभी आता है जब फूल जैसे बच्चे मुस्कराते हैं गाते हैं।[आस्कर वाइल्ड]
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11 पाठकों का कहना है :
बहुत सुन्दर कहानी लिखी है आपने रंजू जी.. सचमुच बाग हो या घर, बच्चों से ही सजता संवरता और महकता है... वरना सब वीराना है..
बहुत सुन्दर कहानी बनी है :)
मैं तो पढकर बच्चा बन गया। वाकई अच्छी कहानी है।बस बच्चों की कमी है। वे भी पढने आ जाएँ तो मज़ा आ जाए।
रंजना जी कहानी पढ कर लगा "काश फिर से बच्चा बन जाये" ।
रंजू जी
बहुत सुन्दर कहानी है।
बस बच्चों की कमी खल रही है।
-रचना सागर्
bahut sunder ek bar fir bachpan ki yaad aa gayi. accha laga bachpan ki yaado main ja kar.
आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने इस कहानी को पसंद किया :)
मैं आज बहुत दिनों बाद इस ब्लॉग पर आई
यह कहानी मेरी लिखी नही है बचपन मैं
पढ़ी थी ...नन्हे-मुन्ने बच्चो के साथ
इसको बाँटने का दिल किया इसको [आस्कर वाइल्ड] ने लिखा है
उस दिन मुझे नाम याद नही आ रहा था
आज मिला तो मैने उनके नाम के साथ पोस्ट कर रही हूँ ...शुक्रिया
रंजना जी..
कहानी बहुत प्यारी और मासूम है..
ये सच है कि पढ कर मन बच्चे के समान हो गया..
हिन्द युग्म निरन्तर नई उपलब्धियाँ अर्जित कर रहा है..
ये प्रयास सराहनीय है कि अब बच्चों के लिये भी हिन्द युग्म ने सोचना शुरु किया है..
बहुत खुसी हुई
saadhuvaad tushar ji
बहुत सुन्दर कहानी है,और सिखाती है की स्वार्थी होना गलत बात है | सराहनीय प्रयास |
रंजना जी
कहानी पढ़कर मुझे एक कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं
बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी
गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी
हिन्द युग्म पर आप सबका बचपन यूँ ही लौटाती रहें ।
शुभकामनाओं सहित
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