Thursday, July 26, 2007

ढेला और पत्ती

कभी पढी थी एक कहानी ।वही मासूम -सी कहानी सुनाती हूं बच्चों को ।एक मासूम ,भोली दोस्ती की ।एक छोटी- सी कोशिश की।
एक थी आम की पत्ती और एक मिट्टी का ढेला ।दोनो निश्चिन्त थे ।तभी आकाश में बादल घिरने लगे ।पत्ती बोली--बरसात आयेगी तो मैं तुम्हे ढंक लून्गी ।हलकी बयार भी चलने लगी ।यह देख ढेला पत्ती से बोला -"आन्धी आयेगी तो मै तुम पर बैठ जाऊन्गा "तभी ज़ोर की आन्धी आयी और बादलों की गडगडाहट के साथ तेज़ बारिश होने लगी ।
तेज़ बारिश में ढेला घुल गया और आन्धी में पत्ती उड गयी ।कहानी धीरे से बच्चों के कान में घुस गयी ।और नन्हे-मुन्ने गहरी नीन्द में सो गये ।
:)


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3 पाठकों का कहना है :

रिपुदमन पचौरी का कहना है कि -

दोस्तों मुझे इस ब्लौग पर लिख्ना है।

मुझे क्या करना होगा। किससे संपर्क करना होगा ?

जयप्रकाश मानस का कहना है कि -

मित्रों, क्यों सत्यानाश कर रहे हैं । ढेला और पत्ती मूलतः छत्तीसगढ़ी की लोककथा है जो कई अन्य लोकभाषाओं में प्रचलित है । इसे बच्चों की कथा क्यों बना रहे हैं । लोक साहित्य को बच्चों का साहित्य नहीं कहा जाता । कविता के क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं । क्यों चारों तरफ बिना समझे बुझे उड़ान भर रहे हैं ? जब किसी विधा की समझ ही नहीं है तो ऐसा करके आप क्या साबित करना चाहते हैं । बाल कविता वको आज तक परिभाषित नहीं किया जा सका । उसे जैसा चाहे तोड़ा मरोड़ा जा रहा है। कोई उसे नवसाक्षर साहित्य के रूप में परोस रहा है कोई उसे अंतरजाल पर लोककथाओं के साथ विश्व को बता रहा है कि लो यही बाल साहित्य है ।

मित्रों पहले विधा को समझिए । फिर उसके पुराने रचनाकारों को पढिये । उनसे हो सके तो संपर्क करिये । नहीं तो उन्हें पढिये । फिर उसका थोड़ा इतिहास भी जानिए । आप लोग तो अतिउत्साह में किसी भी दिशा में कूद पड़ रहे हैं । अभी अभी पता चला कि कहानी भी यहाँ पर धड़ल्ले से छापने वाले हैं आप लोग । ऐसे में किसी भी दिशा में आपको सफलता मिलने में कठिनाई होगी । कविता का कार्य अच्छा चल रहा था । यह सब क्या हो रहा है ....

बुरा लगे तो माफ करना । और नहीं करना तब भी मैं क्या बिगाड़ सकता हूँ आप लोगों का ।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

आदरणीय मानस जी,

क्षमा कीजियेगा किंतु यहा मेरी थोडी असहमति है। हमारा उद्देश्य सत्यानाश करना नहीं है।

बाल-उद्यान आरंभ करने के पीछे उद्देश्य बच्चों के साहित्य पर लेखन को न केवल प्रोत्साहित करना है अपितु इस ब्लॉग को एसी सामग्री का संग्रह बनाना है जिससे बच्चों में हम साहित्यिक अभिरुचि विकसित कर सकें।

इस लोक कथा को आपकी प्रतिक़ृया पढने के पश्चात मैनें अपनी बेटी को सुनाया जो महज चार वर्ष की है। उसनें मुझसे जो सवाल किये वे बडे गंभीर थे। "पापा बारिश से ढेले को पत्ती नें क्यों नहीं बचाया?"। "पहले आँधी आयी कि पहले बारिश?। "कम बारिश आती तो पत्ती ढेले को बचा लेती और तेज आँधी नहीं होती तो क्या ढेला पत्ती को बचा लेता"।..और मेरे बहुत से उत्तरों से उसनें निष्कर्ष निकाला कि किसी चीज़ की अति बुरी होती है। फिर वह गमले से मिट्टी खोद लायी और तोड लायी एक पत्ता..मुझे ग्लास से पानी डाल कर और तेज पंखा चला कर उसकी जिग्यासा को आकृति देनी पडी। किंतु मैं प्रसन्न हुआ कि यह निरी देशज सोच है और कल्पना को कितने सारे आयाम देती है। वरना बच्चों की कल्पनाशक्ति का सारा स्पेस तो हैरीपोटर निगल बैठा है।

हमारे तथाकथित महान विद्वानों की गलती है कि बाल साहित्य आज तक परिभाषित नहीं हो सका। जुल्फ, आँख, नाक, भूख हथौडा लिकने वालों को कभी अपनी पीढी को कुछ अच्छा देने की सुध नहीं रही। समय के साथ बीरबल, तेनालीरामा मरते चले गये और स्पाईडरमैन और बैटमैन पनप गये। वैसी सोच में बच्चों की कोमल कल्पनाशक्ति विकृत होने लगी। सोने पे सुहागा पोटर महोदय!!!

क्यों न ज़िंदा हों लोक परिकल्पनायें? क्यों न पारिभाषित हो बाल साहित्य? क्यों हमारे बच्चे स्कूली कवितायें भी अंग्रेजी कविता का अनुवाद ही पढें? क्यों न यह बीडा उठाया जाये कि बच्चों के लिये जिम्मेदारी से लिखा जायेगा। मैं दो कार्टून फिल्में-माई फ्रेंड गनेशा और हनूमान के बनने से उत्साहित हुआ था..... कि हमारे पास बाल कहानियों का खजाना है और फिर भी बाल साहित्य की एक अदद परिभाषा तक नहीं?

आप सत्य कह रहे हैं कि पढना और इतिहास जानना आवश्यक है। अभी बाल उद्यान का ट्रायल चल रहा है, इसे पूरी गंभीरता से चलाया जायेगा। आपकी नाराजगी के बाद भी आपका मार्गदरशन लेने में हम चूकेंगे नहीं और कोशिश करेंगे कि इसकी सफलता भी सुनिश्कित करें। इस ब्लॉग से हम बच्चों को जोडना चाहते हैं और यह प्रयास स्कूल स्कूल जा कर करेंगे। रचनात्मक बच्चों और बाल साहित्य लिखने वाले रचनाकारों को नीयमित स्तंभ लखने के लिये अनुरोध करेंगे। एक सृजनात्मक प्रयास तो हमारा माना ही जा सकता है।

लेखिका नें अपने उद्धरण में अपने कहानी पढे जाने का उल्लेख भी किया है और आपने स्त्रोत बता कर महत्वपूर्ण जानकारी भी प्रदान की।

*** राजीव रंजन प्रसाद

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