Friday, September 14, 2007

नई कहानी


अब्बक – डब्बक टम्मक – टूं नाचे गु‍डिया रानी।
आसमान में छेद हो गया, बरसे झम–झम पानी।
आओ लल्लू, आओ पलल्लू, सुन लो नई कहानी।।

थोड़ा सा हम शोर मचाएं, थोड़ा हल्ला – गुल्ला।
हम चाहे तो लड्डू खाएं, हम चाहे रसगुल्ला।

लेकिन ध्यान रहे न ज़्यादा, हो जाए शैतानी।
आओ लल्लू, आओ पलल्लू, सुन लो नई कहानी।।

हम चाहें तो चंदा पर जाकर झंडा फहराएं।
हम चाहें तो शेरों के भी दांतों को गिन आएं।

हूई बात पूरी वो, जो है मन में हमने ठानी।
आओ लल्लू, आओ पलल्लू, सुन लो नई कहानी।।

परी कहां अब दुनिया में हैं कम्प्यूटर की बातें।
दिन बीतें धरती पर अपने, और चंदा पर रातें।

हम राजा, हम रानी, अपनी चले यहां मनमानी।
आओ लल्लू, आओ पलल्लू, सुन लो नई कहानी।।


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9 पाठकों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

रजनीश जी,

आपने पलल्लू की तस्वीर बडी रोचक लगायी है :)

अब्बक – डब्बक टम्मक, लल्लू-पलल्लू जसे प्रयोगों से आनंद बढ गया है। बच्चे न सिर्फ इसे याद रखेंगे बल्कि इन शब्दों से उच्चारण का मज़ा भी लेंगे। बच्चों के मनोविज्ञान पर आपकी पकड का कोई जवाब नहीं।

परी कहां अब दुनिया में हैं कम्प्यूटर की बातें।
दिन बीतें धरती पर अपने, और चंदा पर रातें।

बच्चों को एसे सपने देने की आवश्यकता भी है। बहुत बधाई एक और सुन्दर प्रस्तुति के लिये।

*** राजीव रंजन प्रसाद

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

रजनीश जी,

'आओ लल्लू, आओ पलल्लू' की जगह 'आओ लल्लू, आओ पल्लू' होता तो मुझे ज्यादा मजा आता। या इसी प्रकार के समान स्वरी-संज्ञाएँ। कोई ऐसा भी कह सकता है कि 'पल्लू' नाम नहीं होता, मगर हमारे पूर्वांचली बच्चों को कुछ भी नाम दे दिया जाता है। 'पल्लू' मतलब आँचल लगे तो 'कल्लू' 'छल्लू' 'मल्लू' आदि रख लीजिए।

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

रजनीश जी,

अच्छी कहानी सुनाई आपने.. बच्चों को बहुत मज़ा आयेगा,
रजनीश जी आज ही मैं आपके ब्लोग पर भी गया था बहुत अच्छी रचानायें हैं बहुत देर तक पढ़ता रहा..
आप लोगों के साथ खुद को पाकर गर्व महसूस हो रहा हैं.
- नमस्कार

SahityaShilpi का कहना है कि -

रजनीश जी!
हमें तो बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना और बच्चों को भी निश्चय ही पसंद आयेगी. वैसे ये ’पलल्लू’ हमें भी खटका. :)

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत सुंदर लगी आपकी यह कविता
बच्चे इसको खूब मजे से पढेंगे ...:)

Dr. Zakir Ali Rajnish का कहना है कि -

आप लोगों को कविता पसंद आई, जानकर अच्छा लगा। हाँ दो लोगों ने कविता के सम्बंध में कुछ विचार रखे हैं, जिनपर मैं अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना आवश्यक समझता हूँ।
शैलेश जी आपका सुझाव है- 'आओ लल्लू, आओ पलल्लू' की जगह 'आओ लल्लू, आओ पल्लू' होता तो मुझे ज्यादा मजा आता।
अजय जी ने भी कहा है- वैसे ये ’पलल्लू’ हमें भी खटका।
यहाँ पर मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि प्रत्येक गेय कविता या गीत का अपना छंद होता है और अपनी एक लय होती है। यदि यहाँ पर "पलल्लू" के स्थान पर "लल्लू" शब्द का उपयोग होता, तो वहाँ पर छंद दोष उतपन्न हो जाता और लय में भी बाधा आती। इसीलिए वहाँ पर "पलल्लू" शब्द का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा रही पलल्लू शब्‍द की बात, तो यह पूर्वी उत्तर प्रदेश खासकर अवध क्षेत्र का एक प्रचलित शब्द है, जो ढीले-ढाले लोगों के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
आशा है आप लोगों की शंकाओं का समाधान हो गया होगा।

Unknown का कहना है कि -

रजनीश जी,
'परी कहां अब दुनिया में हैं कम्प्यूटर की बातें।
दिन बीतें धरती पर अपने, और चंदा पर रातें।'
आपकी यह रचना बहुत अच्छी लगी .. बच्चों को कविता में बहुत मज़ा आयेगा,
बधाई

अभिषेक सागर का कहना है कि -

रजनीश जी,
बहुत अच्छी कविता। अब्बक – डब्बक टम्मक, लल्लू-पलल्लू जैसे शब्दो से कविता की रचनात्मकता और निखर गयी है।
बधाई स्वीकार करें।

गीता पंडित का कहना है कि -

रजनीश जी,
अब्बक – डब्बक टम्मक, लल्लू-पलल्लू

बहुत सुंदर कविता ..

बच्चे इसे याद रखेंगे,
मजे से पढेंगे भी....

बधाई

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