डाक्टर चूं चूं
आती है एक चिड़िया रोज़
गाती है एक चिड़िया रोज़
प्यार कुहू को करती है
कुछ सुनती, कुछ कहती है
दाना खूब चबाती है
चाकलेट नहीं खाती है
कुहू हुई नाराज़ बहुत
चिड़िया से ना बोले अब
मम्मी से भी कहती है
चिड़िया क्यों नही सुनती है
चूं चूं शोर मचाती है
चाकलेट नहीं खाती है
मम्मी बोलीं ,कुहू सुनो
चिड़िया से खुद बात करो
यूं नाराज़ नहीं रहना
चिड़िया से जाकर कहना
क्यों तुम मुझे रुलाती हो
चाकलेट नहीं खाती हो
चिड़िया आई कुहू के पास
बोली कुहू! ना रहो उदास
तुम हो मेरी फ़्रेंड कुहू
पर मैं हूं डाक्टर चूं चूं
चाकी ज़्यादा खाएंगे
दांत सभी गिर जाएंगे
तुम भी ज़्यादा मत खाना
डाक्टर का मानो कहना
फ़्रेंड का तुम मानो कहना
चूं चूं का मानो कहना
- प्रवीण पंडित
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9 पाठकों का कहना है :
प्रवीण जी
आपकी कविता बच्चो के लिये बहुत ही उपयोगी है।
इतनी अच्छी कविता के लिये बहुत बहुत बधाई।
"'डाक्टर चूं चूं और कुहू"" की कविता बहुत प्यारी लगी पर चाकलेट नही खायेंगे यह बात माननी बहुत मुश्किल है :):)
सुंदर लगी आपकी यह बाल कविता प्रवीण जी !!
प्रवीण जी
सुन्दर बाल कविता के लिये बधायी.
ऐसी कविता लिखना आसान नहीं .. बचपन में दोबारा वापिस लौटना पडता है.
शिक्षा देने का यह तरीका ठीक है।
शिक्षाप्रद अच्छी बाल कविता. बधाई.
अच्छी कविता है कुहू मगर चॉकलेट जरूर खायेगी...:)
तस्वीर भी बहुत सुन्दर है...
शानू
प्रवीण जी!
बहुत ही अच्छी रचना है. बधाई स्वीकारें!
चिडिया ने डाक्टर की बात "कुहू" को बडे प्यार से समझायी है। मेरे ख्याल से नटखट कुहू को अब चिडिया की बात मान ही लेनी चाहिए।
चिडिया डाक्टर चूं चूं ने
"चाकलेट नही खायेंगे ....."
"कुहू" को बडे प्यार से समझाया है।
बात माननी बहुत मुश्किल ....
बच्चो के लिये बहुत ही सुंदर,
उपयोगी कविता के लिये
बधाई।
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