रूपाली साल्वे की एक कविता
प्यारे बच्चो,
लगता है आज गौरवजी किसी कार्य में व्यस्त हो गये हैं, मगर इसका मतलब यह कदापि नहीं आज बाल-उद्यान में आपके लिये कुछ भी नहीं है, हमारा प्रयास है आपकी रचनाओं को भी हिन्द-युग्म के इस मंच पर जगह दी जाय ताकि आपकी रचानात्मकता भी निख़र कर बाहर आ सके। यदि आप भी लिखते हैं तो शर्माना छोड़िये और अपनी रचनाएँ, परिचय व फोटो सहित bu.hindyugm@gmail.com पर भेजिए। बच्चो, इसी कड़ी में आज आपके समक्ष औरंगाबाद, महाराष्ट्र की छात्रा रूपाली साल्वे अपनी रचना लेकर बाल-उद्यान में उपस्थित हैं। इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है -
नाम :- रूपाली साल्वे
विद्यालय :- एस. बी. ओ. ए. पब्लिक स्कूल
शहर :- औरंगाबाद, महाराष्ट्र
पहले...
दूर थे फिर भी पास थे तुम
जाने क्यूँ बहक से गये तुम
था हमें तुम्हारा इंतज़ार
क्या तुम्हे नहीं था हमसे प्यार?
अब...
तुम हो तो हम नहीं
बिछड़े बंधू के लिये दु:ख भी नहीं
अब तो सिर्फ़ कांटे हैं
जो तुमने हमें बाँटे हैं
क्यों ऐसा निर्णय लिया
हिंसा को यूँ ही अपना लिया...!
न शहर को छोड़ा न यार को
भूल गये अपनों के प्यार को
छोड़ दो यह हिंसा
बन जाओ इंसान
पहचानों अपने देश को
पहन लो दया-प्रेम की पौशाक को
तुम बदल जाओ यही आस है
धरती माँ तो तुम्हारे ही पास है
अपनी मिट्टी को जानो यार
सभी करेंगे तुमसे प्यार...
- रूपाली साल्वे
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12 पाठकों का कहना है :
Suwagat hai aapka
प्रिय रूपाली,
अपनी छोटी उम्र के परिपेक्ष्य मे बहुत ही परिपक्व रचना है आपकी। आपके अन्दर असीम सम्भावनायें छुपी हैं। वक्त तो निखारेगा ही,आप भी अपनी तरफ से प्रयास करते रहना।
इस रचना पर क्या कहूँ.... शुरूआत बहुत अच्छी की थी आपने,पर बाद मे थोड़े बिखर गये विचार। पर आप एक बात को लेकर निश्चिंत रहो,कि मै आपकी रचनाओं का प्रशंसक बन चुका हूँ।
और कोशिश करते रहो,यही शुभकामना है।
सस्नेह,
श्रवण
रूपाली,
तुम्हारी पहली कविता आज यहाँ देख कर खुशी हो रही है कि आज की नयी प्रतिभाये आ रही है।
बहुत अच्छी सोच और बहुत अच्छी कविता...
आगे भी आप लिखते रहें
इस नन्हीं प्रतिभा (रूपाली साल्वे) का स्वागत करता हूँ..
बहुत ही अच्छी भाव युक्त कविता लिखी है, वर्तमान में चल रही हिंसा , भाई भाई का द्वेष्, आपसी रंजिश, दुश्मनी, रिश्तों में पनपतीं दूरियाँ, मन-मुटाव, जमीनी जंग, क्षय होता विश्वास - प्यार , लुप्त होते भाव, क्षीण होता सत्कार का चित्र उभार इस नन्हीं सी प्रतिभा ने अपनी कलम से लोहा मनवाया है..
ढेर सारी शुभकामनायें
प्रिय रूपाली।
आपकी कविता आपके भीतर छिपी प्रतिभा को दर्शाती है। आपकी उम्र में एसी विलक्षण रचनायें कम ही देखने मिलती हैं।
आपके विचार बहुत उत्तम है। अपने भीतर की कवयित्री को और निखारिये, खूब पढिये और खूब लिखिये। मेरी शुभकामनायें आपको...
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत सुंदर यूं ही आगे भी लिखती रहो
बहुत सम्भावानाये हैं तुम में लिखने की
शुभकामना और प्यार के साथ
रंजना [रंजू ]
रूपाली जी,
हिन्द-युग्म परिवार में आपका स्वागत है। आप निश्चित रूप से आगे चलकर एक बड़ी कवयित्री बनेंगी। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
रुपाली
स्नेह....:-)
अपनी प्रतिभा को पहचानिए....और ढेर सारी कविताएँ भेजिए...
हिंसा की ओर बढ़नेवाली शक्तियों का ह्रास हो....आपसी प्रेम बढ़े...
ऐसी भावनाएँ अभी से आप में पनप रहीं हैं ये बहुत अच्छी बात है
आप प्रयास करते रहिए...सफल कवयत्री बन ने की संभावना को सच कर दिखाइए
अनेक शुभकामनाओं के साथ
सुनीता यादव
रूपाली,
उम्र छोटी....
सोच अच्छी ...
अच्छी रचना....
ऎसे ही लिखती रहिये...
आप एक दिन बहुत अच्छी कविताएं लिखेंगी।
सस्नेह.
ढेर सारी शुभकामनायें
नन्हीं कवियत्री का स्वागत है। रूपाली के पास कल्पना है, शब्द है, पर अभी विचारों को तारतम्यता के लिए थोडी मेहनत की आवश्यकता है।
उसके लिए हम सबकी शुभकामनाएं साथ हैं। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि नन्हीं रूपाली आगे चलकर एक सफल रचनाकार के रूप में अपनी पहचान बनाएं।
यहाँ पर मैं नियंत्रक जी से यह कहना चाहूंगा कि वे बालोपयोगी रचनाएं ही यदि इस ब्लाग पर पोस्ट करें, तो अच्छा रहेगा।
मेरी समझ से निम्न पंक्तियों एक अच्छी कविता तो हैं, पर उन्हें बालोपयोगी कहना उचित नहीं है-
"पहले...
दूर थे फिर भी पास थे तुम
जाने क्यूँ बहक से गये तुम
था हमें तुम्हारा इंतज़ार
क्या तुम्हे नहीं था हमसे प्यार?
अब...
तुम हो तो हम नहीं
बिछड़े बंधू के लिये दु:ख भी नहीं
अब तो सिर्फ़ कांटे हैं
जो तुमने हमें बाँटे हैं"
Hi, cool blog :) ,Good Blog!
Look from Quebec Canada
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WWG :)
प्रिय रूपाली!
आपकी कविता और आपके विचार, दोनों बहुत ही सुंदर हैं. कविता में यद्यपि अभी सुधार की गुंज़ाइश है जो कि अभ्यास से ही होगा. इसलिये लिखना और पढ़ना ज़ारी रखें. निश्चय ही एक दिन आप बहुत अच्छी रचनाकार बनेगीं.
-अजय यादव
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