जंगल में घुड़दौड़
हालाँकि आज मेरी पोस्ट का दिन नहीं था। पर जब राजीव जी का सुबह फोन आया, तो मुझे उनके आदेश का पालन करना ही था। संयोग से मैंने कल ही एक बाल कविता लिखी है, उसे ही आप सबकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूं।
जंगल में घुड़दौड़ हुयी, तो पहुँचे घोड़े बीस।
धुन का पक्का एक गधा भी पहुँचा पहन कमीज।
धुन का पक्का एक गधा भी पहुँचा पहन कमीज।
खुद को घोड़ों संग देख गदहे ने मुँह को खोला।
भड़क उठे घोड़े जब उसने ढ़ेचूँ - ढ़ेचूँ बोला।
घोड़ों के सरदार ने कहा- सुनिए ओ श्रीमान।
गधा हमारे साथ रहे, ये हम सबका अपमान।
पीला-लाल किए मुँह घोड़े गये रेस से बाहर।
गदहे भैया बड़ी शान से दौड़े पूँछ उठाकर।
हिम्मत हारे नहीं गधे जी मेडल लेकर आए।
झूठी शान दिखाकर घोड़े बेमतलब पछताए।
ज़ाकिर अली 'रजनीश'
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8 पाठकों का कहना है :
badhiyaan kavitaa hai zaakir1! SEEKH BHI ACHHEE HAI.
ARVIND
रजनीश जी.
आपकी इतनी सुन्दर कविता के लिये आभारी हुआ जा सकता है। बच्चों को संदेश देने के लिये जो तरीका आपनें ढूंढा है वह अनुकरणीय है। झूठी शान से बच्चों को बचना चाहिये, यह गहरा विचार है। आप जैसा मनीषी जो कि फलदार वृक्ष की तरह है... जितना फल से लदा हुआ उतना ही झुका हुआ...आप इस बात को सचमुच सश्स्क्तता से कस हकते थे और आपने किया भी।
हिम्मत हारे नहीं गधे जी मेडल लेकर आए।
झूठी शान दिखाकर घोड़े बेमतलब पछताए।
बहुत सुन्दर रचना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
रज़नीशजी,
सरल भाषा में बच्चों को गुढ़ संदेश दे देना आपकी रचनाओं की ख़ासियत है। निश्चय ही बच्चे इस कविता से मनोरंजन एवं शिक्षा दोनों ही प्राप्त करेंगे।
बहुत खूबसूरत रचना!
बहुत ही सुंदर कविता है रजनीश जी .... बच्चे इस को पढ़ के निश्चय ही आनन्दित होंगे !!
कविता के साथ साथ तस्वीर भी अच्छी है ।
- सीमा कुमार
बच्चों के लिए बड़ी हीं सुंदर रचना लिखी है आपने रजनीश जी।
बधाई स्वीकारें।
अरे वाह!
रजनीश जी,
आपकी यह बाल-रचना गुदगुदाती तो है ही , मगर साथ ही साथ समानता रखने की, झूठी शान त्यागने की सीख भी दे जाती है। सार्थक रचना।
रजनीश जी.
बहुत सुन्दर कविता । बच्चों को संदेश देने के लिये जो तरीका आपनें ढूंढा है वह अनुकरणीय है।
आपका प्रयास बहुत सफल है
बधाई
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