माँ इसको कहते
जब भारत ने हमें पुकारा,
इक पल भी है नही विचारा,
जान निछावर करने को हम
तत्पर हैं रहते .
माँ इसको कहते .
इस धरती ने हमको पाला,
तन अपना है इसने ढ़ाला,
इसकी पावन संस्कृति में हम
सराबोर रहते .
माँ इसको कहते .
इसकी गोदी में हम खेले,
गिरे पड़े और फिर संभले,
इसकी गौरव गरिमा का हम
मान सदा करते.
माँ इसको कहते .
देश धर्म क्या हमने जाना,
अपनी संस्कृति को पहचाना,
जाएँ कहीं भी विश्व में हम
याद इसे रखते .
माँ इसको कहते .
मिल जुल कर है हमको रहना,
नहीं किसी से कभी झगड़ना,
मानवता की ज्योत जला हम
प्रेम भाव रखते .
माँ इसको कहते .
कवि कुलवंत सिंह
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5 पाठकों का कहना है :
इसकी गोदी में हम खेले,
गिरे पड़े और फिर संभले,
इसकी गौरव गरिमा का हम
मान सदा करते.
माँ इसको कहते .
बहुत सुंदर पंक्तियाँ
सादर
रचना
देश भक्ति से सराबोर हर पंक्ति .बल्ले-बल्ले .बधाई .
सुन्दर बाल कविता.
जब भारत ने हमें पुकारा,
इक पल भी है नही विचारा,
जान निछावर करने को हम
तत्पर हैं रहते .
माँ इसको कहते .
kulwant likhna to seekh lo. jo munh me aaya bak diya.
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