Friday, August 28, 2009

माँ इसको कहते

जब भारत ने हमें पुकारा,
इक पल भी है नही विचारा,
जान निछावर करने को हम
तत्पर हैं रहते .
माँ इसको कहते .

इस धरती ने हमको पाला,
तन अपना है इसने ढ़ाला,
इसकी पावन संस्कृति में हम
सराबोर रहते .
माँ इसको कहते .

इसकी गोदी में हम खेले,
गिरे पड़े और फिर संभले,
इसकी गौरव गरिमा का हम
मान सदा करते.
माँ इसको कहते .

देश धर्म क्या हमने जाना,
अपनी संस्कृति को पहचाना,
जाएँ कहीं भी विश्व में हम
याद इसे रखते .
माँ इसको कहते .

मिल जुल कर है हमको रहना,
नहीं किसी से कभी झगड़ना,
मानवता की ज्योत जला हम
प्रेम भाव रखते .
माँ इसको कहते .

कवि कुलवंत सिंह


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5 पाठकों का कहना है :

rachana का कहना है कि -

इसकी गोदी में हम खेले,
गिरे पड़े और फिर संभले,
इसकी गौरव गरिमा का हम
मान सदा करते.
माँ इसको कहते .
बहुत सुंदर पंक्तियाँ
सादर
रचना

Manju Gupta का कहना है कि -

देश भक्ति से सराबोर हर पंक्ति .बल्ले-बल्ले .बधाई .

Shamikh Faraz का कहना है कि -

सुन्दर बाल कविता.

जब भारत ने हमें पुकारा,
इक पल भी है नही विचारा,
जान निछावर करने को हम
तत्पर हैं रहते .
माँ इसको कहते .

Anonymous का कहना है कि -

kulwant likhna to seekh lo. jo munh me aaya bak diya.

Anonymous का कहना है कि -

Manju you please learn how to comment. A child whose age is 1/5 than you can make better comment. This is my free advice to you. Please Please Please Please Please

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