शरीर का मूल्य
शरीर का मूल्य
किसी शहर में एक युवक रहता था |वह बहत हष्टपुष्ट तथा बुद्धिमान था लेकिन वह सीमा से अधिक आलसी था| कहीं से अगर कुछ खाने को पा जाता तो मेहनत करने का नाम भी नही लेता था |परिश्रम से मन चुराने के कारण ही उसने भीख मांगना शुरू कर दिया और वह भीख मांग कर मजे उडाने लगा |
एक बार वह किसी साधु के पास जाकर बोला -"मेरे पिता जी अंधे हैं ,इसलिए वह कोई काम धंधा नही कर पाते|मेरा परिवार बहुत गरीब है ,परिवार वालों का गुजारा चलाने के लिए मुझे कोई नौकरी नही मिल रही है ,इसलिए आप कुछ मेरी सहयाता कीजिये|"
साधु ने कहा- " क्या सहायता चाहिए ,तुम्हे ?"
"थोड़े पैसे दे दीजिये जिससे आज का काम चल जाएगा और मै कुछ समय के लिए इस दुःख से मुक्ति पा जाऊँगा "
उस युवक ने कहा |
साधु बोला -"तुम हमेशा के लिए दुःख से छुटकारा पाना चाहते हो या कुछ समय के लिए ?"
साधु की यह बात सुनकर युवक मन ही मन प्रसन्न हुआ |उसने सोचा-भला हमेशा के लिए दुःख सेछुटकारा कौन नही चाहेगा |शायद इस साधु से कोई मोटी रकम मिल जायेगी और सुख से दिन व्यतीत होंगे |
ऐसा सोचकर उसने कहा -"महाराज !मै तो हमेशा के लिए इस दुःख से छुटकारा पाना चाहता हूँ "
साधु ने कहा "ठीक है |तू मुझे अपना दाहिना हाथ दे दे |इसके बदले तुझे पाँच सौ रुपये मिल जायेंगे "|यह सुनकर
युवक निराश हो गया और उदास होकर बोला -मुझे यह पसंद नही क्योंकिपॉँच सौ रुपये से अधिक मूल्यवान मेरा हाथ है "
"तो शहर में एक ऐसा सेठ है जो तेरी दोनों आंखों के बदले पाँच हजार रुपये दे सकता है "साधु ने कहा |
"नही महाराज !मै ऐसा नही कर सकता |मेरी आँखें पाँच हजार से ज्यादा कीमती हैं "
"तो तेरा संकट सदा के लिए टल जाए ,ऐसा कर ,तू अपना सारा शरीर बेच दे इसके बदले तुझे दस हजार रपये मिलेंगे"
"क्या मेरे शरीर की कीमत दस हजार है "नौजवान ने आश्चर्य से कहा |साध ने बड़े धैर्य के साथ कहा -मैंने सब बातें तम्हें बता दी हैं |अब तू क्या बेच सकता है -इसका निश्चय तू कर ले |जैसा माल, वैसी कीमत "
अब उयक को अपने शरीर की कद्र का पता चल गया था ,उसने सोचा जिस शरीर से दस हजार मिल सकते हैं ,उसी से अगर परिश्रम करुँ तो इसका कई गुना कमा सकता है |
उसने साधु से से कहा-" महात्मा जी ! मै शरीर किसी कीमत पर नही बेच सकता |"
साध ने कहा -"तो ठीक है ,तम्हें अपने शरीर का मूल्य मालूम हो गया है |अब तुम औरों से सहायता न मांग कर स्वयं अपने शारीर से सहायता मांगो |तम्हारा शारीर जो तम्हें देगा ,वह सबसे अधिक आनंदमयी होगा |"
साधु की यह बातसुनकर उस दिन से युवक ने आलस्य त्याग दिया |
साभार
बाल बोध कथाएं
नीलम मिश्रा
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6 पाठकों का कहना है :
इससे मिलती जुलती कहानी पढ़ी है.कहानी की सीख बहुत ही बढिया लगी .शरीर होना चाहिए .
acchi story hai !!!
नीलम जी,
बहुत बढ़िया कहानी बताई आपने, सभी को आलस त्याग कर मेहनत करनी चाहिए . और इंसान का शरीर तो भगवान् की तरफ से बहुत बड़ा तोहफा है, उसकी कद्र करना भी जरूरी है.
धन्यवाद.
यह शरीर और उस शरीर का एक एक अंग भगवान का अनमोल तोहफा है! हालांकि यह शरीर नाशवान है परन्तु जब तक जीवन है तब तक शरीर और उसके सभी अंगों का बहुत महत्व है! बहुत अच्छी कहानी है!
नीलम जी, इस दुनिया में आलसी जीवों की कमी नहीं है. जिसने भी इस कहानी के किरदार की तरह अपने शरीर और काम की महत्ता समझ ली उसी का कल्यान समझो.
कुछ आलसी लोग इस कहानी से झटका खाकर यदि अपना उपयोग करनें लगें तो आपकी मेहनत और कहानी का उद्देश्य सफल हो जाये.
बहुत अच्छी कहानी. लेकिन शायद ऐसी ही कहानी मैंने कहीं पढ़ी हुई है.
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