बूँदा-बाँदी

बूँदा-बाँदी हुई है भारी,
छतरी भी उड़ गई हमारी,
मुन्नु भीगा, चुन्नु भीगा,
कीचड़ से भर गई क्यारी ।
स्कूल भी जाना हुआ है मुश्किल,
खेल भी कैसे खेलेंगें हम,
दोस्त सभी घुसे हैं घर में ,
बोरियत से निकले है दम ।
या तो बारिश नहीं है आती,
या फिर हमको खूब सताती,
उमस बहाये खूब पसीना,
धूप भी हम को नहीं है भाती ।
इन्द्रधनुष है बड़ा न्यारा,
आसमान में प्यारा-प्यारा,
भारी वर्षा बेशक सताये,
पर मौसम है सबको भाये ।
हरे खेत-खलिहान बने हैं ,
फसलों के अंबार खड़े हैं,
बारिश आये, खूब सुहाये,
देश को भी धनवान बनाये।
--डॉ॰ अनिल चड्डा

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5 पाठकों का कहना है :
चड्डा जी हर बार की तरह लाजवाब.
बूँदा-बाँदी हुई है भारी,
छतरी भी उड़ गई हमारी,
मुन्नु भीगा, चुन्नु भीगा,
कीचड़ से भर गई क्यारी ।
अनिल जी,
क्या बात!
बूँदा-बाँदी हुई है भारी,
छतरी भी उड़ गई हमारी,
मुन्नु भीगा, चुन्नु भीगा,
कीचड़ से भर गई क्यारी ।
लीजिये, इतना मैं भी कह दूं......
भिगो दिया कविता ने सबको
सब बातें है इसमें प्यारी-प्यारी.
manju gupta aati hogi badhai dene. inhe to kewal unipathak 200 rupee se matlab hai.
अनोंय्मोउस जी आप ka नाम लिखा है आभार .आप के कमेन्ट ने उनिपाठक के भाव की बरसात कर दी. आप के बाद ही कविता पर अपने विचार लिख रही हूं . चडडा जी की हमेशा की तरह बहुत सुंदर बाल रचना . बधाई .
अनोनिमस जी मेरे कमेन्ट अमूल्य,अनमोल हैं .२००रु. इसकी कीमत नहीं है .आप रचनाओं पर कमेन्ट दो .न की मेरे कमेन्ट पर .
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