चवन्नी का चाँद
रात भर में बस एक फ़ेरी लगाते हो,
इस चौकीदारी का कितना कमाते हो?
कोई तो पुकार तेरी सुनता न होगा,
एक हीं पल में जो गुजर जाते हो।
महंगाई की मार है,
और मालिक बेरोज़गार है,
ऐसी नौकरी तो बेशक बेकार है
और ऊपर से तुम एक रोज़ कम आते हो,
इस चौकीदारी का कितना कमाते हो?
कोशों दूर डेरा है,
उन अंधेरों में बसेरा है,
और तो और राहू-केतु ने घेरा है,
तो मजबूरी में मजदूरी का क्या पाते हो,
इस चौकीदारी का कितना कमाते हो?
चलो मैं हीं कुछ देता हूँ,
तेरे दु:ख-दर्द लेता हूँ,
यूँ तो मैं बच्चा हूँ,
जेब से कच्चा हूँ,
लेकिन मेरे जो पापा हैं,
बंद लिफ़ाफ़ा हैं,
कब कैसा लेटर हो
और कब कैसा नेचर हो
अल्लाह हीं जाने!
कल की जो माने
तो मैं दौड में जीता था
और पापा की नज़रों में
मैं एक चीता था।
उन्होंने मुझको गले से लगाया
और यह बताया
कि मैंने उनका रूतबा बढाया है
उनकी इज़्ज़त में
चार चाँद लगाया है,
बड़ा खुश हो
उन्होंने मुझको दुलारा,
शुभ शुभ हो सब
दिए रूपए ग्यारह।
भैया ने दस की
आइसक्रीम ला दी
और बाकी की चार
चवन्नी लौटा दी।
मेरे जेब में अब
चवन्नी तो हैं चार
लेकिन मुझे है
चार चाँद की दरकार।
अब अकेले हो तुम
तो एक चवन्नी हीं दूँगा
और अब से तुम्हें
चवन्नी का चाँद कहूँगा।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
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7 पाठकों का कहना है :
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है.एक बच्चे की मासूम सी कल्पना दिल को छूती है.
बहुत ही बढिया
Indian language is rocking..
good i like it..
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है । कल्पना की उड़ान चाँद तक पहुँच गई । भाई वाह !
नई सोच के साथ हर पंक्ति अति सुंदर ,भावपूर्ण है .बधाई .
तनहा जी आप बल कवितायेँ भी लिखते हैं. मुझे नहीं मालूम था.
पढ़कर अच्छा लगा.
रात भर में बस एक फ़ेरी लगाते हो,
इस चौकीदारी का कितना कमाते हो?
कोई तो पुकार तेरी सुनता न होगा,
एक हीं पल में जो गुजर जाते हो।
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