Saturday, August 8, 2009

मेरा हाथी

हाथी इतना बड़ा क्यों बोलो
पूँछ है छोटी-सी
छोटी-छोटी आँखें इसकी
सूँड़ है मोटी-सी
बड़े-बड़े से दाँत नुकीले
टाँग है मोटी-सी
झप-झप से वो कान झुलाये
मक्खियों को उनसे वो भगाये
धप-धप चाल चले मस्तानी
लगे किसी राजा की निशानी
खाना बहुत है खाता
पर है भारी काम कराता
गुस्से से जब वो चिंघाड़े
शेर भी जंगल छोड़ के भागे
पर जो प्यार से उसे बुलाता
सेवक उसका वो बन जाता
सूँड़ से अपनी पीठ बिठाता
तुम भी सूँड उसकी सहलाओ
झट से बैठ पीठ पर जाओ
घूम-घूम कर मौज मनाओ

--डॉ॰ अनिल चड्डा


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2 पाठकों का कहना है :

Manju Gupta का कहना है कि -

बाल मनोविज्ञान का ध्यान रख रची कविता का संदेश प्रेरणा देता है .बधाई .

Shamikh Faraz का कहना है कि -

चड्डा जी बहोत सुन्दर कविता


हाथी इतना बड़ा क्यों बोलो
पूँछ है छोटी-सी
छोटी-छोटी आँखें इसकी
सूँड़ है मोटी-सी
बड़े-बड़े से दाँत नुकीले
टाँग है मोटी-सी
झप-झप से वो कान झुलाये
मक्खियों को उनसे वो भगाये
धप-धप चाल चले मस्तानी
लगे किसी राजा की निशानी
खाना बहुत है खाता
पर है भारी काम कराता
गुस्से से जब वो चिंघाड़े
शेर भी जंगल छोड़ के भागे
पर जो प्यार से उसे बुलाता
सेवक उसका वो बन जाता
सूँड़ से अपनी पीठ बिठाता
तुम भी सूँड उसकी सहलाओ
झट से बैठ पीठ पर जाओ
घूम-घूम कर मौज मनाओ

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