Friday, August 28, 2009

चील और खरगोश







प्यारे बच्चों,आओ आज तुम्हे कुछ मजेदार छोटी कहानियां सुनती हूँ जिनसे कुछ सबक भी सीखा जा सकता है.
1. चील और खरगोश
एक दिन एक छोटा खरगोश खेतों में बड़ी बेफिक्री से उछलता हुआ जा रहा था की अचानक उसकी निगाह एक पेड़ पर बैठी हुई एक आलसी चील पर पड़ी जो वहां बैठ कर आराम कर रही थी. खरगोश रुक गया और उसने चील से पूछा, ''चील जी, आप वहां बैठी क्या कर रही हैं.'' तो चील ने उत्तर दिया, ''खरगोश भाई, मेरा मन आराम करने को किया तो मैं यहाँ ऊपर बैठ कर आराम कर रही हूँ, उड़ते-उड़ते थक गयी हूँ.'' खरगोश बोला, ''मैं आराम करने के लिए तुम्हारे पास इतने ऊपर नहीं पहुँच सकता किन्तु क्या मैं यहाँ पेड़ के नीचे बैठ कर आराम कर सकता हूँ?'' चील ने कहा, ''हाँ, हाँ क्यों नहीं, मुझे तो ऊपर बैठ कर आराम मिल रहा है पर तुम नीचे ही बैठ कर आराम कर लो.'' भोला-भाला खरगोश वहीँ पेड़ के नीचे आँखें बंद करके लेट गया और जरा सी देर में ही उसे ठंडी हवा में नींद गयी. कुछ देर में एक लोमड़ी उधर से गुजरी और खरगोश को झपट्टा मार कर दबोच लिया और फटाफट खा गयी. बेचारा खरगोश!!
तो बच्चों इस कहानी से क्या मतलब निकाला आपने? चलो मैं ही बता देती हूँ......वह यह की दूसरों की नक़ल करने के लिये उनसे सलाह मांगते समय स्वयं भी अपने बारे में सोचना चाहिए की किसी की नक़ल करने का परिणाम गलत भी हो सकता है। जैसे की चील की सलाह पर खरगोश अपनी जान गँवा बैठा.



प्रेषक



शन्नो अग्रवाल


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7 पाठकों का कहना है :

Manju Gupta का कहना है कि -

शन्नो जी आप की पहली नैतिकप्रद कहानी की बहुत
बधाई .

neelam का कहना है कि -

नक़ल करने के लिये उनसे सलाह मांगते समय स्वयं भी अपने बारे में सोचना चाहिए की किसी की नक़ल करने का परिणाम गलत भी हो सकता है। जैसे की चील की सलाह पर खरगोश अपनी जान गँवा बैठा.

shanno ji baht hi shikshaprad kahaani ,umeed karti hoon ki bachche isse prerna jaroor lenge

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

नीलम जी, और मंजू जी
कहानी और उसके आशय को पसंद करने के लिये धन्यबाद. और नीलम जी, इतनी सुंदर चील व खरगोश की तस्वीरें चिपकाने के लिये भी बहुत धन्यबाद. मेरे मन की बात कैसे जान ली आपने की 'कितना अच्छा होता यदि इस कहानी के साथ चील और खरगोश की तस्वीर भी होती.' कहाँ से मिलीं आपको इतनी प्यारी-प्यारी तस्वीरें?

Shamikh Faraz का कहना है कि -

बहुत ही शिक्षाप्रद कहानी है शन्नो जी की.

Shamikh Faraz का कहना है कि -

aapki kahani padhkar gulzar sahab ki 1 nazm yaad aai.

खिड़की पिछवाड़े को खुलती तो नज़र आता था
वो अमलतास का इक पेड़, ज़रा दूर, अकेला-सा खड़ा था
शाखें पंखों की तरह खोले हुए
एक परिन्दे की तरह
बरगलाते थे उसे रोज़ परिन्दे आकर
सब सुनाते थे वि परवाज़ के क़िस्से उसको
और दिखाते थे उसे उड़ के, क़लाबाज़ियाँ खा के
बदलियाँ छू के बताते थे, मज़े ठंडी हवा के!

आंधी का हाथ पकड़ कर शायद
उसने कल उड़ने की कोशिश की थी
औंधे मुँह बीच-सड़क आके गिरा है!!

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

धन्यबाद शामिख जी, और आपकी दी हुई गुलजार साहब की नज़्म भी बहुत अच्छी है.

Manju Gupta का कहना है कि -

शन्नो जी आप ने जवाब दे कर लाजवाब कर दिया .मेरे इसी कमेन्ट पर अच्छी लिखना भूल गयी .कहानी बहुत अच्छी है

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