Monday, August 17, 2009

बारिश आई



आओ-आओ बारिश आई,
संग-संग ठंडी हवा भी लाई,
तुम भी भीगो, हम भी भीगें,
हो जाये हम सब की धुलाई ।

कागज की छोटी नाँव बनाएँ,
फिर बहते पानी में बहाएँ,
डूबे न भारी बूँदों से,
हाथों की छतरी आओ बनाएँ।

जहाँ भी थोड़ा पानी देखा,
नाँव ने रूख वहीं का देखा,
बहती जाये, लुढ़कती जाये,
पत्थर-कंकर कर अनदेखा ।

बारिश की बौछार है भारी,
बढ़ती जाये नन्ही सवारी,
देखो कितनी हिम्मत वाली,
छोटी सी ये नाँव हमारी।

आओ कुछ हम सीखें इस से,
कभी रुके न किसी भी डर से,
बढ़ते जायें, कदम उठाये,
छुटे न मंजिल कभी भी हम से।

--डॉ॰ अनिल चड्डा


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5 पाठकों का कहना है :

Kavi Kulwant का कहना है कि -

wah wah bhai mazedaar..

Shamikh Faraz का कहना है कि -

आओ कुछ हम सीखें इस से,
कभी रुके न किसी भी डर से,
बढ़ते जायें, कदम उठाये,
छुटे न मंजिल कभी भी हम से।


बहुत अच्छी सीख दी.

Shamikh Faraz का कहना है कि -

kisi english poet nu bhi apni "FOUNTAIN" me yahi seekh di hai

Manju Gupta का कहना है कि -

फोटो और लाजवाब कविता पढ़ कर बचपन याद आ गया .बधाई .

neelam का कहना है कि -

bachpan me ek kavita padhi thi ,

"amma jara dekh to upar chale aa rahe hain baadal ".
aapki kavita padhte hi yaad aayi baal udyaan me aakar hm sab ko apna bachpan hi yaad aa jaata hai ,achchi kavita likhne par aabhar aapka.

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