Saturday, November 7, 2009

शेर और बिल्ली

एक बार जंगल का शेर
भूखा बैठा कितनी देर
नही फँसा था कोई शिकार
हो गया शेर बहुत लाचार
कैसे अपनी भूख मिटाए
कैसे वह कोई जानवर खाए
देखी उसने बिल्ली एक
खाए थे चूहे जिसने अनेक


शेर के मुँह मे भर गया पानी
सोची उसने एक शैतानी
शेर ने अपने मन में विचारा
खाए बिना अब नहीं गुजारा
किसी तरह से भूख मिटाए
क्यों न वह बिल्ली को खाए
बिल्ली जो बैठी वृक्ष की डाली
नहीं पास वो आने वाली

किसी तरह बिल्ली को बुलाए
चालाकी से उसको खाए
सोच के गया बिल्ली के पास
बोला! मौसी मुझको आस(उम्मीद)
तुम तो कितनी समझदार हो
और सब में से होशियार हो
मुझ पर भी कर दो अहसान
मुझे भी अपना शिष्य जान
मुझे भी अपना ज्ञान सिखा दो
होशियारी का राज बता दो
कहना तेरा हर मानूँगा
सारी उम्र तक सेवा करूँगा
मौसी होती दूसरी माता
बना लो गुरु-शिष्य का नाता
बड़ी चालाक थी बिल्ली रानी
समझ गई वो सारी कहानी

बोली सब कुछ सिखलाऊँगी
आरम्भ से सब बतलाऊँगी
सीखो तुम पंजे को चलाना
जाल मे अपने शिकार फँसाना
और फिर मुँह में उसको दबाना
मार के उसको मजे से खाना
बिल्ली ने शेर को सब बतलाया
पर न वृक्ष पे चढ़ना सिखाया
शेर का मन जो नहीं था साफ
नहीं करेगा बिल्ली को माफ
वो तो बिल्ली को खाएगा
भोजन उसको ही बनाएगा
सीख लिया उसने गुर सारा
अब तो शेर ने मन में विचारा
बहुत हुआ बिल्ली का भाषण
अब तो चाहिए मुझको भोजन

समझ गई बिल्ली भी चाल
आया उसको एक ख्याल
जब तक झपटा बिल्ली पे शेर
तब तक हो गई बहुत ही देर
चढ़ गई बिल्ली वृक्ष के ऊपर
पहले से बैठी थी जिसपर
बैठ के ऊपर बोली! बच्चे
तुम तो अभी हो अकल के कच्चे
मुझ संग चल रहे थे चालाकी
पूरी न होगी शिक्षा बाकी
जो मैंने तुमको बतलाया
वो तो बस ऐसे भरमाया
असली राज न तुम्हें बताया
न तुम्हें वृक्ष पे चढ़ना आया
हिम्मत है तो चढ़ के दिखाओ
और मुझे अपना भोज बनाओ

तुमने यह सोचा भी कैसे
तेरी बातों में फसूँगी ऐसे
दुश्मन पर एतबार करूँगी
और मैं तेरे हाथों मरूँगी
यह तो कभी नहीं हो सकता
शेर न कभी दोस्त बन सकता
अब तो शेर को समझ में आया
अपनी गलती पर पछताया
मन मसोस के शेर रह गया
और जाते-जाते यह कह गया
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शिक्षा तो सच्चे मन से लो
बुरे विचार न मन में पालो
.....................
बच्चो तुम भी बात समझना
बुरे भाव न मन में रखना
रखना तुम सदा सच्चा मन
जिससे होगा सुखमय जीवन
दुश्मन पे एतबार न करना
धोखे से कभी वार न करना
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