सूरज की ज़िद
ज़िद कर बैठा सूरज एक दिन,
अब नही करूँगा सेवा
चाहे धरती अम्बर मिलकर
जितना भी दे मुझे मेवा
मेरे कारण दिन होते है
मेरे कारण राते
मैं गर्मी में तपता रहता
फिर चाहे कितनी हो बरसातें
सुन लो देवी और देवताओ
और धरती के पुत्रो....
इस गर्मी ने छीन लिया है
मेरा सुख और चैना
मेरा हाल नही अच्छा है
और मैं क्या बतलाऊँ
सोंच रहा हूँ इस गर्मी में
हिल स्टेशन हो आऊँ
--प्रिया चित्रांशी

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4 पाठकों का कहना है :
प्रकृति का बदलता रूप
सूरज पसीने से तर बतर
किया ऐलान छुट्टी का
या खुदा !
चाँद की ड्यूटी ही डबल कर दे..........
इतनी अच्छी कविता को मेरी नन्हीं तुकबंदी का तोहफा
waaaaaaaw gr88888 one
मेरा हाल नही अच्छा है
और मैं क्या बतलाऊँ
सोंच रहा हूँ इस गर्मी में
हिल स्टेशन हो आऊँ
sach me bahut nainsafi ho rahi hai bechare sooraj k saath to
कविता के भाव बहुत अच्छे हैं लेकिन..
हमें तो शरद की रात अच्छी लगती है
गुनगुनी धूप में फूलों की बारात अच्छी लगती है
गर्मी हो या सर्दी फिर भी हिल स्टेशन की बात अच्छी लगती है
बहुत अच्छी कविता... सूरज चाचू की नाराज़गी जायज है..
हैपी ब्लॉगिंग
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