अभिलाषा
बन दीपक मैं ज्योति जगाऊँ
अंधेरों को दूर भगाऊँ,
दे दो दाता मुझको शक्ति
शैतानों को मार गिराऊँ ।
बन पराग-कण फूल खिलाऊँ
सबके जीवन को महकाऊँ,
दे दो दाता मुझको भक्ति
तेरे नाम का रस बरसाऊँ ।
बन मुस्कान हंसी सजाऊँ
सबके अधरों पर बस जाऊँ,
दे दो दाता मुझको करुणा
पाषाण हृदय मैं पिघलाऊँ ।
बन कंपन मैं उर धड़काऊँ
जीवन सबका मधुर बनाऊँ,
दे दो दाता मुझको प्रीति
जग में अपनापन बिखराऊँ ।
बन चेतन मैं जड़ता मिटाऊँ
मानव मन मैं मृदुल बनाऊँ,
दे दो दाता मुझको दीप्ति
जगमग जगमग जग हर्षाऊँ ।
कवि कुलवंत सिंह
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7 पाठकों का कहना है :
aasha se bharpur dil mein ek sundar ehsaas jagati kavita,bahut badhai.
bhut hi sundar rachana.ati uttam.
बढिया सृजन, आशावादी व मधुर रचना
propkaar ki bhaavna bharpoor achchi lagi aapki kavita
achhi rachna
alok singh "sahil"
प्रिय मित्रों मेरा अहोभाग्य...!
अच्छी अभिलाषा है। बधाई।
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