Friday, June 20, 2008

अभिलाषा

बन दीपक मैं ज्योति जगाऊँ
अंधेरों को दूर भगाऊँ,
दे दो दाता मुझको शक्ति
शैतानों को मार गिराऊँ ।

बन पराग-कण फूल खिलाऊँ
सबके जीवन को महकाऊँ,
दे दो दाता मुझको भक्ति
तेरे नाम का रस बरसाऊँ ।

बन मुस्कान हंसी सजाऊँ
सबके अधरों पर बस जाऊँ,
दे दो दाता मुझको करुणा
पाषाण हृदय मैं पिघलाऊँ ।

बन कंपन मैं उर धड़काऊँ
जीवन सबका मधुर बनाऊँ,
दे दो दाता मुझको प्रीति
जग में अपनापन बिखराऊँ ।

बन चेतन मैं जड़ता मिटाऊँ
मानव मन मैं मृदुल बनाऊँ,
दे दो दाता मुझको दीप्ति
जगमग जगमग जग हर्षाऊँ ।

कवि कुलवंत सिंह


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7 पाठकों का कहना है :

mehek का कहना है कि -

aasha se bharpur dil mein ek sundar ehsaas jagati kavita,bahut badhai.

Anonymous का कहना है कि -

bhut hi sundar rachana.ati uttam.

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

बढिया सृजन, आशावादी व मधुर रचना

सीमा सचदेव का कहना है कि -

propkaar ki bhaavna bharpoor achchi lagi aapki kavita

Anonymous का कहना है कि -

achhi rachna
alok singh "sahil"

Kavi Kulwant का कहना है कि -

प्रिय मित्रों मेरा अहोभाग्य...!

Dr. Zakir Ali Rajnish का कहना है कि -

अच्छी अभिलाषा है। बधाई।

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