रूप हजार
हे जग के स्वामी, प्रभु अंतर्यामी
तेरे चरणों में नमन हजार
हुआ सवेरा, मिटा अँधेरा
चहक उठा ये सारा संसार
चहक उठा ये सारा संसार
गोल गोल चंदा, नीला आसमाँ
झिलमिल करते तारे हजार
ऊँचे ऊँचे पर्वत, कहीँ गहरी घाटी
धरती पे बिखरे रूप हजार
गहरी गहरी नदिया, छोटी बड़ी नैया
पानी में उठती लहरें हजार
धरती पे बिखरे रूप हजार
गहरी गहरी नदिया, छोटी बड़ी नैया
पानी में उठती लहरें हजार
हरी भरी बगिया, रँग रँगीले फुलवा
फुलवा को चूमे तितली बार बार
खट्टे मीठे अमुवा, डाली पे झूमे
गरमी है लाई आम की बहार
फुलवा को चूमे तितली बार बार
खट्टे मीठे अमुवा, डाली पे झूमे
गरमी है लाई आम की बहार
छोटे से घर में, मम्मी पापा संग में
बच्चों को करते प्यार अपार
बच्चों को करते प्यार अपार
बड़ी सी ये दुनिया, निराली तेरी माया
बच्चों को देना प्रभु आशीष हजार
बच्चों को देना प्रभु आशीष हजार
सुषमा गर्ग
17.06.2008
17.06.2008
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4 पाठकों का कहना है :
सुषमा जी,
थोड़ा जल्दी में लिखी लगती है कविता..
प्रवाह ठीक से बन नहीं पाया है
थोडा सा वक़्त और देते शब्द संयोजन पर
तो बहुत प्यारी कविता निकल कर आती
और बच्चों के मन को बहुत लुभाती
प्रवाह सरल होने पर बच्चों को याद भी हो जाती
और फिर लिलीपुट संसार में गुनगुनाई जाती
कोशिश के लिये आप धन्यवाद के पात्र हैं..
सुंदर कविता
Shushama ji bhaav bahut achcha hai lekin jo bhupendar ji ne kaha vahi mai bhi kahna chaahungi ,pryaas achcha tha
अच्छी कोशिस सुषमा जी,आप और अधिक मेहनत करते रहिए.शुभकामनाओं सहित
आलोक सिंह "साहिल"
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