वृक्ष दादा
वृक्ष दादा तुम हो प्यारे
धरती के उपहार निराले
युग युग से अस्तित्व तुम्हारा
योगी जैसा जीवन धारा
रंग रूप से खूब लुभाते
सब पर निश्छल प्यार लुटाते
तेज धूप से तपता राही
तेरी शरण में छाया पाता
भूख प्यास से थका मुसाफिर
मीठे फल खा हसँता जाता
क्या उलटी है रीत तुम्हारी
बैरी से भी प्रीत तुम्हारी
डंडा मारे चाहे कोई तुमको
क्रोध नहीं तुम करते हो
बदले में मीठे फल देकर
संदेश प्रेम का देते हो
जब झूम झूम लहराते हो
बादल का मन हर्षाते हो
मेरी धरा की भाप तुम्ही तो
नील गगन पहुँचाते हो
पक्षी आये बसेरा पाये
संग तेरे संसार बनाये
तितली चूम चूम दुलराये
गुन गुन करता भँवरा आये
कूक कूक कर कोयल गाये
तोता राम राम की तान सुनाये
प्राणवायु को देने वाले
दुर्वायु को हरने वाले
जीवन के प्राणाधार हमारे
शीतलता को देने वाले
वृक्ष काटना पाप है भारी
वृक्षारोपण माँग हमारी
इसलिये बच्चों आज ठान लो
पौधा एक जमीँ में रोप लो
इसका ऋण सृष्टि पर भारी
आई कर्ज चुकाने की अब बारी
सुषमा गर्ग
03.06.2008
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5 पाठकों का कहना है :
बहुत सुन्दर सुषमा जी,
युग युग से अस्तित्व तुम्हारा
योगी जैसा जीवन धारा
रंग रूप से खूब लुभाते
सब पर निश्छल प्यार लुटाते
क्या उलटी है रीत तुम्हारी
बैरी से भी प्रीत तुम्हारी
डंडा मारे चाहे कोई तुमको
क्रोध नहीं तुम करते हो
बदले में मीठे फल देकर
संदेश प्रेम का देते हो
वृक्ष काटना पाप है भारी
वृक्षारोपण माँग हमारी
वृक्ष दादा का परमार्थ बडे ही रोचक ढंग से समझाया
सुषमा जी.. बहुत खूब..
बस अब आप यदि मात्रा भी गिन कर लें तो लय बद्धता में कहीं कही आ रही रुकावट भी दूर हो जाएगी और सरस प्रवाह आ जाएगा....
सुषमा जी,
कवि कुलवंत जी की सलाह पर ध्यान दीजिएगा। बढ़िया बाल कविता लिखी है आपने।
सुंदर लगी आपकी लिखी हुई कविता ...
sundar bhaav sushma ji saath hi mai bhi kavi kulvant ji aur shailesh ji ki baat bhi dohraana chaahungi
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