Tuesday, June 3, 2008

वृक्ष दादा

वृक्ष दादा तुम हो प्यारे
धरती के उपहार निराले

युग युग से अस्तित्व तुम्हारा
योगी जैसा जीवन धारा
रंग रूप से खूब लुभाते
सब पर निश्छल प्यार लुटाते

तेज धूप से तपता राही
तेरी शरण में छाया पाता
भूख प्यास से थका मुसाफिर
मीठे फल खा हसँता जाता

क्या उलटी है रीत तुम्हारी
बैरी से भी प्रीत तुम्हारी
डंडा मारे चाहे कोई तुमको
क्रोध नहीं तुम करते हो
बदले में मीठे फल देकर
संदेश प्रेम का देते हो

जब झूम झूम लहराते हो
बादल का मन हर्षाते हो
मेरी धरा की भाप तुम्ही तो
नील गगन पहुँचाते हो

पक्षी आये बसेरा पाये
संग तेरे संसार बनाये
तितली चूम चूम दुलराये
गुन गुन करता भँवरा आये
कूक कूक कर कोयल गाये
तोता राम राम की तान सुनाये

प्राणवायु को देने वाले
दुर्वायु को हरने वाले
जीवन के प्राणाधार हमारे
शीतलता को देने वाले

वृक्ष काटना पाप है भारी
वृक्षारोपण माँग हमारी
इसलिये बच्चों आज ठान लो
पौधा एक जमीँ में रोप लो
इसका ऋण सृष्टि पर भारी
आई कर्ज चुकाने की अब बारी



सुषमा गर्ग
03.06.2008


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5 पाठकों का कहना है :

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

बहुत सुन्दर सुषमा जी,

युग युग से अस्तित्व तुम्हारा
योगी जैसा जीवन धारा
रंग रूप से खूब लुभाते
सब पर निश्छल प्यार लुटाते


क्या उलटी है रीत तुम्हारी
बैरी से भी प्रीत तुम्हारी
डंडा मारे चाहे कोई तुमको
क्रोध नहीं तुम करते हो
बदले में मीठे फल देकर
संदेश प्रेम का देते हो

वृक्ष काटना पाप है भारी
वृक्षारोपण माँग हमारी

वृक्ष दादा का परमार्थ बडे ही रोचक ढंग से समझाया

Kavi Kulwant का कहना है कि -

सुषमा जी.. बहुत खूब..
बस अब आप यदि मात्रा भी गिन कर लें तो लय बद्धता में कहीं कही आ रही रुकावट भी दूर हो जाएगी और सरस प्रवाह आ जाएगा....

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

सुषमा जी,

कवि कुलवंत जी की सलाह पर ध्यान दीजिएगा। बढ़िया बाल कविता लिखी है आपने।

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सुंदर लगी आपकी लिखी हुई कविता ...

सीमा सचदेव का कहना है कि -

sundar bhaav sushma ji saath hi mai bhi kavi kulvant ji aur shailesh ji ki baat bhi dohraana chaahungi

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