अगड़म बगड़म
अगड़म बगड़म जय बम बोला,
तेरे सर पे गरी का गोला,
बनिये ने जब आटा तोला,
हाथी ने तब बटुआ खोला ।
काली बिल्ली, लंगड़ा शेर,
काना बंदर खाए बेर,
खरगोश बना बड़ा दिलेर,
कहता मैं हूँ सवा सेर ।
कुत्ता भौंचक दुम हिलाए,
कौआ बैठा रोटी खाए,
लोमड़ जोर से गाना गाए,
गाना गाकर मुझे रुलाए ।
कनखजूरा उसको काट खाए,
दुनिया को जो रंग दिखाए,
मेढ़क टर्र टर्र हार्न बजाए,
गली गली में शोर मचाए।
कवि कुलवंत सिंह
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
2 पाठकों का कहना है :
हा हा हा मजेदार कविता..
बढिया अगड़म बगड़म
:)
सुंदर कविता
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)