Friday, June 13, 2008

अगड़म बगड़म

अगड़म बगड़म जय बम बोला,
तेरे सर पे गरी का गोला,
बनिये ने जब आटा तोला,
हाथी ने तब बटुआ खोला ।

काली बिल्ली, लंगड़ा शेर,
काना बंदर खाए बेर,
खरगोश बना बड़ा दिलेर,
कहता मैं हूँ सवा सेर ।

कुत्ता भौंचक दुम हिलाए,
कौआ बैठा रोटी खाए,
लोमड़ जोर से गाना गाए,
गाना गाकर मुझे रुलाए ।

कनखजूरा उसको काट खाए,
दुनिया को जो रंग दिखाए,
मेढ़क टर्र टर्र हार्न बजाए,
गली गली में शोर मचाए।

कवि कुलवंत सिंह


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2 पाठकों का कहना है :

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

हा हा हा मजेदार कविता..

बढिया अगड़म बगड़म
:)

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सुंदर कविता

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