कान्हा बना दे
माँ मुझको कान्हा बना दे,
गोरी सी राधा दिला दे ।
बाँसुरी मुझको सिखला दे
तीर यमुना का दिखला दे ।
लुक छुप मैं बाग में खेलूँ,
गोपियों संग रास छेड़ूँ ।
बारंबार उन्हे सताऊँ,
छेड़ उनको मैं छुप जाऊँ ।
वह शिकायत करने आएँ,
पूछने तू मुझसे आए ।
देखता जब तुमको आता,
पेड़ पर चढ़ मैं छुप जाता ।
मुझे पास न जब तुम पाती,
सोच कर कुछ घबरा जाती ।
मुझे डांटना भूल जाती,
दे आवाज मुझे बुलाती ।
हंस हंस जब मैं पास आता,
विकल हृदय सहज हो जाता ।
प्यार से तू पास बुलाती,
गले लगा सब भूल जाती ।
माखन मिसरी फिर मंगाती,
गोद में ले मुझे खिलाती ।
गोपियां जब याद दिलाती,
उन्हें डांटकर तुम भगाती ।
अपने प्यार का सदका दे,
काजल का टीका लगा दे ।
माँ मुझको कान्हा बना दे,
अपने आँचल में छिपा दे ।
कवि कुलवंत सिंह
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7 पाठकों का कहना है :
bhut sundar rachana.krishana ki chhavi to bhut hi manmohak hoti hai. sundar rachana ko padhane ke liye aabhar.
कवि कुलवंत जी आपने तो कमाल कर दिया ,बहुत ही सुंदर रचना है |बाल-कृष्ण की नन्ही-नन्ही अठखेलियाँ तो सबका मन मोह लेती है |कविता पढ़कर सुभद्रा कुमारी चौहान जी की एक सुप्रसिद्ध कविता "यह कदम्ब का पेड़ " याद आ गई |कुछ पंक्तियाँ लिख रही हूँ :-
यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ
होता यमुना तीरे
मई भी उस पर बैठ कन्हैया
बनता धीरे धीरे
ले देती यदि मुझे बासुरी
तुम दो पैसे वाली
किसी तरह नीचे झुक जाती
यह कदम्ब की डाली
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बहुत -बहुत बधाई
सुंदर कान्हा की सुंदर बातें |
अवनीश तिवारी
वाह कुलवंत जी वाह ...
मजा आ गया सुन्दर नटखट कविता नटखट नागर के जैसी ही..
सीमा जी आपका विशेष आभार .. मेरी प्रिय कवित्री की पंक्तियाँ याद दिलाने के लिये..
कुलवंत जी, कविता के बहाने आपने अपने मन की अभिलाषाओं को उडेल कर रख दिया है। खुशी की बात है कि अभी आपका बचपन आपके भीतर बचा हुआ है।
प्रिय मित्रों!
मैं आप सभी का अति आभरी हूँ। रश्मि जी, सीमा जी, अवनीश जी, राघव जी, जाकिर जी ! आप सभी ने कविता पसंद की.. हार्दिक धन्यवाद...
क्या सुन्दर बच्चा है प्यारी कविता
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