जागरण गीत
जागरण गीत ,
अब न गहरी नींद में तुम सो सकोगे ,
गीत गाकर मै जगाने आ रहा हूँ
अतल अस्ताचल तुम्हे जाने न दूंगा ,
अरुण उदयाचल सजाने आ रहा हूँ
कल्पना में आज तक उड़ते रहे तुम
साधना में सिहरकर मुड़ते रहे तुम ,
अब तुम्हे आकाश में उड़ने न दूंगा ,
आज धरती पर बसाने आ रहा हूँ
सुख नहीं यह ,नीद में सपने संजोना ,
दुःख नहीं यह शीश पर गुरु भार ढोना
शूल तुम जिसको समझते थे अभी तक ,
फूल मै उसको बनाने आ रहा हूँ
देख कर मंझधार को घबरा न जाना ,
हाथ ले पतवार को घबरा न जाना ,
मै किनारे पर तुम्हे थकने न दूंगा ,
पार मै तुमको लगाने आ रहा हूँ
तोड़ दो मन में कसी सब श्रंखलाएँ
तोड़ दो मन में बसी सब संकीर्णताएँ
बिंदु बनकर मै तुम्हे ढलने न दूंगा ,
सिन्धु बन तुमको उठाने आ रहा हूँ
तुम उठो ,धरती उठे ,नभ शिर उठाये ,
तुम चलो गति में नई गति झनझनाए
विपथ होकर मै तुम्हे मुड़ने न दूँगा
प्रगति के पथ पर बढाने आ रहा हूँ
सोहन लाल द्विवेदी
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2 पाठकों का कहना है :
koi to likho kuch ?????????????
इतना प्यारा जागरण गीत पढ़ाने के लिए धन्यवाद।
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