Tuesday, December 22, 2009

आंसू से प्यास बुझाता हूँ

चित्र आधारित कविता लेखन प्रतियोगिता की शीर्ष 3 कविताएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। कुछ और कविताएँ भी उल्लेखनीय रही। उन्हीं कविताओं में से एक कविता प्रकाशित की जा रही है।

आंसू से प्यास बुझाता हूँ

मम्मी गयी स्कूल पढ़ाने,
पापा गए हैं दफ्तर.
मन की बातें किससे बोलूं,
कोई नहीं है घर पर..

टॉफी बिस्कुट डब्बे में है,
डब्बे रैक के ऊपर..
भूख लगी तो हाथ बढ़ाया,
गिरा मुंह के बल पर..

बंद कमरे में रो रोकर,
और घुट घुट कर मैं जीता हूँ.
प्यास लगी तो ऑंसू से,
अपनी प्यास बुझाता हूँ..

मम्मी-पापा के बिना,
कितना मुश्किल है जीना.
बचपन से तो अच्छा है,
पचपन का हो जाना..

सुजान पंडित,
शंकर विला, कांटा टोली चौक, ओल्ड एच.बी.रोड, रांची-८३४००१ (झारखण्ड)


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2 पाठकों का कहना है :

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

बाल मन की व्यथा आज के परिप्रेक्ष्य में........बहुत ही चिंताजनक है, इसे पढ़कर कोई बदलाव की सुगबुगाहट हो

Manju Gupta का कहना है कि -

आज के बचपन की बाल पीड़ा की हकीकत को दर्शाती बाल कविता है .आज के माता -पिता ,अभिभावकों तक यह आवाज जरूर पहुंचे .
शायद वे जागरूक हो .

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