पहला झूठ
पहला झूठ
खेलते खेलते बच्चे ने मेरी जेब से पेन निकाला .वह पेन की निब फर्श पर मारने को हुआ ,तो मैंने पेन छीन लिया .वह रोने लगा .उसे चुप करने के लिए पेन देना पड़ा .वह फिरनिब को फर्श पर मारनेलगा ।
पेन कीमती था .मै नही चाहता था ,कि बच्चा उसे बेकार कर दे ।मैंने बच्चे का ध्यान फिराया .पेन उससे छीन कर छिपा लिया .पर की ओर इशारा करते हुए मैंने कहा ,"पेन ....चिड़िया ।" पेन चिड़िया ले गई .इस बार वह रोया नही .आसमान की ओर नजर उठा कर देखने लगा ।
एक दिन वह बर्फी खा रहा था .मैंने कहा "बिट्टू ,बर्फी मुझे दे दो ।"
उसने बर्फी पीठ के पीछे छिपाई और बोला ,"बफ्फी .......चिया ......."
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3 पाठकों का कहना है :
मासूम झूठ।
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अदभुत है हमारा शरीर।
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा?
सही है वो जैसा हम उन्हें सिखायेंगे वही तो सीखेंग । शुभकामनायें
नीलम जी,
यह झूठ नहीं.... it is survival of fittest :)
भई, बच्चे हैं तो क्या हुआ, उन्हें भी तो इसी दुनिया में जीना है :). ऐसे ही भोले बने रहेंगे तो कोई भी उन्हें धोखा दे देगा.... इसलिए इसे होशियारी कहिये :)) .
हाँ, यह अलग बात है कि इसमें उनका भोलापन खो जाता है और वे दुनियादारी के दांव पेच सीख जाते हैं.
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