एकता की ताकत
एक बार की बात है,
अब तक हमको याद है.
जंगल में थे हम होते,
पांच शेर देखे सोते.
थोड़ी आहट पर हिलते,
आंख जरा खोल देखते.
धीरे से आंख झपकते,
साथी से कुछ ज्यों कहते.
दूर दिखीं आती काया,
झुरमुट भैंसों का आया.
नन्हा बछड़ा इक उसमें,
आगे सबसे चलने में.
शेर हुए चौकन्ने थे,
घात लगाकर बैठे थे.
पास जरा झुरमुट आया,
खुद को फुर्तीला पाया .
हमला भैंसों पर बोला,
झुरमुट भैंसों का डोला .
उलटे पांव भैंसें भागीं,
सर पर रख कर पांव भागीं .
बछड़ा सबसे आगे था,
अब वो लेकिन पीछे था .
बछड़ा था कुछ फुर्तीला,
थोड़ा वह आगे निकला .
भाग रहीं भैंसें आगे,
उनके पीछे शेर भागे .
बछड़े को कमजोर पाया,
इक शेर ने उसे भगाया .
बछड़ा है आसान पाना,
शेर ने साधा निशाना .
बछड़े पर छलांग लगाई,
मुंह में उसकी टांग दबाई .
दोनों ने पलटी खाई,
टांग उसकी छूट न पाई .
गिरे, पास बहती नदी में
उलट पलट दोनों उसमें .
रुके, बाकी शेर दौड़ते,
हुआ प्रबंध भोज देखते .
शेर लगा बछड़ा खींचने,
पानी से बाहर करने .
बाकी शेर पास आये,
नदी किनारे खींच लाये .
मिल कर खींच रहे बछड़ा,
तभी हुआ नया इक पचड़ा .
घड़ियाल एक नदी में था,
दौड़ा, गंध बछड़े की पा .
दूजी टांग उसने दबाई,
नदी के अंदर की खिंचाई .
शेर नदी के बाहर खींचे,
घड़ियाल पानी अंदर खींचे .
बछड़ा बिलकुल पस्त हुआ,
बेदम और बेहाल हुआ .
खींचातानी लगी रही
घड़ियाल एक, शेर कई .
धीरे धीरे खींच लाए,
शेर नदी के बाहर लाए .
घड़ियाल हिम्मत हार गया,
टांग छोड़ कर भाग गया .
शेर सभी मिल पास आये,
बछड़ा खाने बैठ गये .
तभी हुआ नया तमाशा,
बछड़े को जागी आशा .
भैंसों ने झुंड बनाया,
वापिस लौट वहीं आया .
हिम्मत अपनी मिल जुटाई,
देकर बछड़े की दुहाई .
शेरों को लगे डराने,
भैंसे मिलकर लगे भगाने .
टस से मस शेर न होते,
गीदड़ भभकी से न डरते .
इक भैंसे ने वार किया,
शेर को खूब पछाड़ दिया .
दूसरे ने हिम्मत पाई,
दूजे शेर पे की चढ़ाई .
सींग मार उसे हटाया,
पीछे दौड़ दूर भगाया .
तीसरे ने ताव खाया,
गुर्राता भैंसा आया .
सींगों पर सिंह को डाला,
हवा में किंग को उछाला .
बाकी थे दो शेर बचे,
थोड़े सहमें, थोड़े डरे .
आ आ कर सींग दिखायें,
भैंसे शेरों को डरायें .
भैंसों का झुंड डटा रहा,
बछड़ा लेने अड़ा रहा .
हिम्मत बछड़े में आई,
देख कुटुंब जान आई .
घायल बछड़ा गिरा हुआ,
जैसे तैसे खड़ा हुआ .
झुंड ने उसको बीच लिया,
बचे शेर को परे किया .
शेर शिकार को छोड़ गये,
मोड़ के मुंह वह चले गये .
शेरों ने मुंह की खाई,
भैंसों ने जीत मनाई .
जाग जाये जब जनता,
राजा भी पानी भरता .
छोटा, मोटा तो डरता,
हो बड़ों की हालत खस्ता .
मिलजुल हम रहना सीखें,
न किसी से डरना सीखें .
एकता में ताकत होती,
जीने का संबल देती .
कवि कुलवंत सिंह
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2 पाठकों का कहना है :
ekta me sachmuch bahut takat hai - kya baat hai - rachna ke liye badhai.
kavita aur isme di gayi shiksha bahut acchi lagi......
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