बबलू को आ गई रुलाई
चित्र आधारित बाल कविता लेखन प्रतियोगिता में तीसरा स्थान डॉ. अनिल चड्डा का है. डॉ. अनिल चड्डा लम्बे समय से बाल-उद्यान में अपनी रचनाएँ भेज रहे हैं. बाल-उद्यान में अब तक इनकी ३० से भी अधिक कविताएँ प्रकाशित हैं.
सुबह-सवेरे उठते-उठते,
मम्मीजी जब नजर न आईं,
मायूसी में ढूँढते-ढूँढते,
बबलू को आ गई रुलाई।
इधर मिले न, उधर मिले न,
घर के हर कोने में देखा,
कौन रसोई में था लेकिन,
बबलूजी ने नहीं था देखा।
भूख लगी जब दूध की उनको,
और जोर से आई रुलाई,
तभी किचन के कोने में से,
मम्मी की आवाज थी आई।
मत रो बबलू,मत रो राजा,
दूध अभी मैं ले कर आई,
मम्मी की आवाज को सुन कर,
फिर से आ गई रुलाई।
अब तो मुशिकल बहुत बड़ी थी,
बबलू को चुप कौन कराये,
क्यों नहीं मम्मी पास थी उसके,
जिद में वो रोता ही जाये।
मम्मीजी ने गोद में ले कर,
दूध था जब बबलू को पिलाया,
मम्मी की गोदी ने इकदम,
बबलूजी को चुप था कराया।
--डॉ. अनिल चड्डा
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2 पाठकों का कहना है :
shukra hai ,babloo chup to hua ,badhiya kavita
aap ko tisresthan ke liye badhai.bachche jab rote hai to dil pr lagta hai .bahut sunder kavita
saader
rachana
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