श्री रामायण सार - भाग -1
प्यारे नन्हें मुन्ने दोस्तो माफी चहुँगा देर से आने के लिये..
आपको पता है प्रकाश पर्व दीपावली क्यूँ मनाई जाती है...
क्यूँकि भगवान श्री राम ने जब रावण का वध किया और वापस
चौदह वर्ष बाद बनवास से वापस लौटे तो उनके आगमन की
खुशी अवध के सभी नर-नारियों दीप जला जला कर उनका
स्वागत किया तभी से दीपावली मनती आ रही है.
ये पावन पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में
मनाया जाता है...
आज मैं आपको भगवान राम की कथा का सार संक्षेप में
सुनाने जा रहा हूँ .. सुनिये
श्री रामायण सार - भाग -1
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त्रेता युग में हरि ने आ जब, रघुकुल में लीन्हां अवतार
ऋषियों का संताप मिटाया, दुष्टों का कीन्हा संहार
अवधपुरी के राजा दशरथ, महाप्रतापी महाज्ञानी
कौशल्या कैकेयी सुमित्रा, अवधपुरी की महारानी
राम लखन और भरत शत्रुघन, पाये पुत्र-रतन ये चार
घर घर होने लगी बधाई, होने लगे मंगलाचार
त्रेता युग में....
विश्वामित्र मुनीश्वर से पा, शिक्षा सब प्रवीण हुये
उत्पाती दैत्यों के बल-छल, मारे डर के क्षीण हुये
राजा जनक ने भेज निमंत्रण स्वमंवर का कीन्हा मनुहार
श्री राम ने स्वमंवर में जा धनुष उठा कीन्हा टंकार
त्रेता युग में.....
परषुराम आ क्रुद्ध हुये फिर, शिव का धनुष उठाने से
कौन मूर्ख जिसको डर नहीं है, अपनी जान गँवाने से
मेरे गुरू के अपमानी का, लहू पीयेगी आज कुठार
स्वमं सामने आ आये वरना, मारे जायेंगे सभी कुमार
त्रेता युग में.....
लक्ष्मण की कर्कश बातों से, परषुराम का क्रोध बढा
तेरी मृत्यु निकट है बालक, बोले भृकुटि चढा-चढा
फरसा उठा, गरज कर बोले, मरने को होजा तैयार
क्रोध शांत कर पाया प्रभु का,सरल मधुर नीका व्यवहार
त्रेता युग में.....
राजाओं का गर्व चूर कर, वर सीता रघुवर लाये
देवगणों ने खुशी मनाई, पुष्प गगन से बरसाये
दशों दिशायें गूंज उठी, नभ-भेदी गूंजा जयकार
जनकपुरी से अवधपुरी तक सजे राह घर और हर द्वार
त्रेता युग मे.....
कुटिल मंथरा के कहने पर, कैकेई ने कीन्हां अनशन
पुत्र भरत को गद्दी माँगी, चौदह वरस राम को वन
क्षत्रिय वचन के आगे खुद को, दशरथ ने पाया लाचार
नज़र लगी खुशियों को अवध की,मचा भयानक हाहाकार
त्रेता युग में.....
राम लखन सीता ने फिर बन, जाने को कीन्हां प्रस्थान
रुदन और कोहराम महल में जन-जन की बंध गयी जुबान
चमक सूर्य की फीकी हुई और, छाया चहुँ ओर अन्धकार
नदियाँ हवा ठहर से गये बस, बहे हजारों अश्रुधार
त्रेता युग में.....
भरत खडाऊँ लिये राम की, प्रजा का पलन करते
राजा दशरथ मृत्यू शैया पर हर पल हर क्षण-क्षण मरते
श्रवण मात-पिता से शापित, पुत्र वियोग का ये प्रहार
नयनों के तारों बिन नयना, दशरथ भी गये स्वर्ग सिधार
त्रेता युग में .....
फिरें वनों में विचरण करते, राम सिया संग लक्ष्मण भ्रात
ऊँच नीच का भेद परे कर, भिलनी, केवट, वानर साथ
पत्थर बनकर पडीं अहिल्या, पग-रज दे किया उद्धार
ऋषि- मुनिन के यज्ञ बचाकर, कीन्हां कोटि-कोटि उपकार
त्रेता युग में हरि ने आ जब, रघुकुल में लीन्हां अवतार
ऋषियों का संताप मिटाया, दुष्टों का कीन्हा संहार
... आगे की कथा लेकर फिर आऊँगा मेरे प्यारे नन्हें मुन्नें दोस्तो..
जय श्री राम..
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8 पाठकों का कहना है :
भूपेन्द्र जी
बधाई । दीपावली से पहले उसके बारे में इतनी उपयोगी जानकारी दी है । राम कथा पढ़कर तो आनन्द ही
आगया । बच्चों के साथ-साथ मैं भी प्रतीक्षा करूँगी आगे की कथा सुनने के लिए । पुनः बधाई
वाह राघव जी!! बहुत ही सुंदर कोशिश और बहुत ही प्यारे ढंग से रामायण पेश की है आपने .
मुझे भी आगे इस को यूं पढने का इंतज़ार रहेगा ...राम कथा यूं बच्चे बहुत अच्छे से समझ पायेंगे .बहुत बहुत बधाई आपको
भूपेन्द्र जी ,
आपने बहुत अच्छी तरह से रामायण का सार बच्चों के सम्मुख प्रस्तुत किया है। हालाकि एक शिकायत भी है कई स्थानों पर शब्द क्लिष्ट हैं जो कि 0-12 वर्ष के आयुवर्ग के बच्चों को समझने में मुश्किल होंगे। इसकी आगामी कडियों के लिये मेरा आग्रह है कि कुछ चित्र और कार्टून भी साथ ही साथ प्रस्तुत करें जिससे यह प्रस्तुति और भी रोचक हो सके।
*** राजीव रंजन प्रसाद
इस प्रयास के लिए साधुवाद।
कहीं-कहीं आप क्षेत्रीय शब्दों का प्रयोग करते हैं तो कहीं-कहीं संस्कृतनिष्ठ शब्दों का। थोड़ा विचार करें।
राघव जी!!
साधुवाद..........साधुवाद ।
आपने रामायण की प्रेरक कथा को कविता में पिरो कर प्रशंसनीय कार्य किया है। यदि इसके साथ चित्रों का भी सजाया गया होता, तो बहुत ही अच्छा होता। इस शुभ कार्य के लिए हार्दिक बधाई।
Bachhon ke Priy kavi BhupendraG,
Pranam,
Hamesha ki tarah aapne samay - awsar aur rchi ko dhyan me rakhkar Kavita likhi hai.
Sadhuvaad,
Bharti Ojha.
रामायण अनुकरणीय है । पिता-पुत्र, भाइ-भाइ, पति-पत्नी, ससुर-दामाद, आदि रिश्तो मे सामान्य जन कैसा व्यवहार करे, इसका मार्गदर्शन देता है रामचरित मानस । कथा और शिक्षा गुँथी हुइ है, रामायण मे । इसलिए कहानी के साथ जो गुढ तत्व है उनको भी आप अपनी सरस कविता मे यथास्थान सम्प्रेसित करे तो बहुत अच्छा होगा । आपके प्रयास की जितनी प्रसँशा कि जाए वह कम है । भगवान श्री राम कि कृपा आप पर बनी रहे ।
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