पहेलियाँ
1,हाथ बढाओ ,दौड़ लगाओ
मुझको पकड़ न पाओ
करो अँधेरा मुझे छिपाओ
करो उजाला साथ में पाओ
2, दूर बादलों में जा कर भी
हाथ तुम्हारे रहती हूँ
करो इशारा उधर ही जाऊं
मुहं से कुछ न कहती हूँ !
3, गर्मी गर्मी मुझसे डरते
सर्दी में करते हैं बात
मैं जब आऊं दिन हो जाता
जाऊं तो हो जाए रात !
4, मैं अपने को देख न पाती
चेहरे की शोभा कहलाती !
5, जहाँ मैं चाहती,वहाँ में जाऊं
कभी किसी के हाथ न आऊं
जिंदा सबको रखना मेरा काम
भला बताओ क्या है मेरा नाम ?
उत्तर ...१ परछाई .२,पतंग ,३, सूरज ४. आँखे ५ हवा
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7 पाठकों का कहना है :
पहेलियां जहां बच्चों का मनोरंजन करती हैं, वहीं वे तर्क शक्ति को भी जगाती हैं।
बधाई स्वीकारें।
रंजना जी
सुन्दर पहेलियाँ लिखी हैं । बचपन की याद दिला दी आपने । बधाई स्वीकर करें ।
सुन्दर पहेलियाँ हैं, और चित्र सुन्दर है.
बच्चों की दीदी आप, सचमुच के समुन्दर हैं
नही पार मिले कोई, इतनी गहराई है..
हर लहर लहर सीपी, अन्दर तक पायी है..
हम बोलें क्या तुमको.. बस दिल से बधाई है
बस दिल से बधाई है..
रंजना जी,
सभी पहेलियां रोचक हैं और प्रस्तुति भी सुन्दर है सचित्र.
सभी पहेलियाँ अच्छी बन पडी हैं। इस विधा को नवजीवन दिया जाना आवश्यक हैं। आपकी और भी एसी प्रस्तुतियों की प्रतीक्षा रहेगी।
*** राजीव रंजन प्रसाद
अरे वाह
पहेलियाँ
नई सीरीज.... बहुत अच्छा लगा।
रंजू जी, इसे ज़ारी रखें।
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