"बेजुबान की जुबान"
चिड़िया बोली ओ इन्सान !
मैंने तेरा क्या बिगाड़ा,
क्यूँ ? तूने मेरा घर उजाडा
क्या मुझको गरमी नही लगती ?
या मुझको लगता नही जाड़ा ?
जब-जब तुमको छाँव चाहिऐ
मेरे घर तले आते हो
और लगे जब सर्दी तो तुम
घर उजाड़ने आ जाते हो
जब-जब तुम मेरे घर आये
मैंने तुमको गीत सुनाये
जब-जब घर मैं गयी तुम्हारे
ढेले पत्थर मुझको मारे
मैं तेरे घर का कंगूरा
बता आज तक जो में लाई ?
फिर भी तूने बिना वजह आ
मेरे घर कि नीव हिलायी
एक बात सुन कान खोलकर
तेरा जो प्यारा जीवन है
जिन सांसों पर चलता है
वो मेरा घर का उत्सर्जन है
तेरे घर कि चौखट से हम
क्या ? तिनका आज तलक लाए
फिर क्यों मेरे घर को ऐसे
चोपट करने तुम आये ?
कहने को इन्सान कहाते
पर, प्रेम दया का नाम नही
बे-घर करना बेजुबान को
क्या, इन्सानियत का काम यही
इसी को दरिया दिली बोलते ?
इसी को क्या कहते ईमान ? 
चिड़िया बोली ओ इन्सान …

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10 पाठकों का कहना है :
राघव जी..
कविता के रूप में आपने एक बहुत बडी समस्या को उठाया है... बढती हुई जनसंख्या के दबाब मे आ कर जिस तरह जंगल साफ़ हो रहे हैं वह निशश्चय ही चिन्ता का विषय है
सुन्दर रचना के लिये वधायी.
sundar hai.
bahdayee
avaneesh tiwaree
राघव जी
चिड़िया के माध्यम से आपने बहुत ही सटीक प्रश्न उठाया है । मैं चाहती हूँ कि इस प्रकार के प्रश्न उठते रहें जिस से मनुष्य की क्रूरता कुछ कम हो सके । सस्नेह
बहुत सुंदर बात कही है आपने कविता के माध्यम से राघव जी ..जिस तरह सब पेड़ काटे जा रहे हैं बेजुबान यही कहते होंगे
सुंदर रचना सुंदर भाव के साथ :)
bahut achhi seekh
प्रतिदिन तरूओं की कटाई,
है धनोपार्जन का साधन।
मानव हानि तब जानेगा,
जब बंटेंगे चारों ओर कफन॥
बरबस हीं मुझे मेरी एक पुरानी कविता याद आ गई। राघव जी, आपने एक चिड़िया के माध्यम से बड़ा हीं महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया है। जंगलों की दिन-प्रतिदिन क्षति निश्च्य हीं चिंता का विषय है। इस दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए....
एक सुंदर कविता के लिए बधाई।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
राघव जी !
सुंदर कविता, अच्छे भाव ...
शुभकामनायें
राघव जी,
सच मे बहुत अच्छी सीख
निशश्चय ही चिन्ता का विषय है
चिडिया के माध्यम से बडे सवाम नन्हें-मुन्नों की सोच के लिये। बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
कविता में संदेश है। बच्चे भी ज़रूर सोचेंगे।
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