Thursday, November 22, 2007

"केले वाला"

गली में केले वाला आया
केले ले लो वो चिल्लाया
सेठ जी ने आवाज लगाई
कैसे दिये हैं केले भाई
बारह रुपये के दर्जन एक
सुबह से दिये दो ठेले बेच
सेठ जी ने दो रुपये निकाले
दो केले दो केले वाले
छिलका छील सड़क पर डाला
खाकर केले चल दिये लाला
ज्यों लाला ने कदम बढ़ाया
छिलका पैर के नीचे आया
गिरते गिरते वो घवराये
मोटी तोंद संभल ना पाये
बच्चों ने फिर हँसी उड़ाई
तब लाला को समझ में आयी
तुम भी बच्चो रखना ध्यान
स्कूल सड़क घर या उद्यान
ये है नैतिक जिम्मेदारी
कचडे से आती बीमारी

तो...
बात रहे बस ध्यान में
कूडा कूडेदान में


22-11-2007


आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

7 पाठकों का कहना है :

रंजू भाटिया का कहना है कि -

कविता की कविता और
अच्छी सीख का है यह तराना
बहुत जरुरी है यह बच्चों को बताना
सड़क पर नही फेंको कूड़े को
अपने शहर को है सुंदर बनाना :)

बहुत अच्छी सीख दी है राघव जी आपने इस कविता के जरिये !!

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

नैतिक शिक्षा देने का यह तरीका बहुत अच्छा और मनोरंजक है।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Sajeev का कहना है कि -

वाह वाह , बहुत बढ़िया, सचमुच बच्चों के लिए जबरदस्त सामग्रियां जुटा रहे हैं, बल उधान के सभी सदस्य बधाई राघव जी

गिरिराज जोशी का कहना है कि -

राघव अंकल, राघव अंकल
यह बात समझ में मेरे आई
लाला ने छिलका सड़क पे फेंका
फिसला खुद ही, हँसी करवाई

कुड़ा-करकड़ का सही स्थान
कुड़ेदान का मैं रखूँगा ध्यान

बहुत खूब!

Dr. Zakir Ali Rajnish का कहना है कि -

बहुत खूब। आपने केले के छिलके के द्वारा लालाजी और पाठकों को भी अच्छी सीख दी है। बधाई।

anuradha srivastav का कहना है कि -

वाह ........बातों-बातों में अच्छी सीख दे डाली आपने तो।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

राघव जी, आप सच में साहित्यकर्म कर रहे हैं। बच्चों को प्रसन्न भी कर दे रहे हैं और उन्हें सही-गलत का ज्ञान भी दे रहे हैं।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)